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All around the world, thousands of markets have millions of tents, and an Arabic tent still lists at the top position and astonishing part of Arabic tents.

Taaza Tadka

धार्मिक फूहड़पन से बाहर आके क्यों ना पुरुषों के लिए भी निराजल व्रत व तीन तलाक़ की प्रथा बने ?

मैं ईमानदारी के साथ इस व्रत का विरोध करता हूँ, नहीं तो एक ऐसी ही प्रथा पुरुषों के लिए भी बनाई जाये कि अब वो भी साल में दो व्रत, जिसे निराजल व्रत
Blog Durga Prasad 25 August 2017

मुस्लिम महिलाओं के लिए एक बड़ा ही ऐतिहासिक फैसला रहा कि उन्हें लगभग तीन तलाक से मुक्ति मिल गयी। लगभग शब्द इसलिए यूज़ करा हूँ कि अभी भी मुस्लिम समाज इसे आसानी से स्वीकार करने वाला नहीं है, और सरकार की तरफ से भी बिल पास होना बाकी है।

खैर आज हम इस सब्जेक्ट पर बात करने वाले नही है। लेकिन इसी से मिलता-जुलता विषय है। हिन्दू धर्म भी इस विषय से अछूता नहीं दिखता है |

पहले सभी देशवासियों को तीज की मुबारकबाद।

तीज महिलाओं का बहुत बड़ा त्योहार है, जो कि वे अपने पतियों की लम्बी आयु के लिए रखती हैं। इसी तरह और भी त्योहार है ज्यूतिया और गणेश चौथ जो कि अपने बच्चो के लिये रहना पड़ता हैं। ये बड़ा ही कठिन व्रत है, जोकि सबके बस की बात नही है। पूरे एक दिन तक बिना खाये पिये रहना कितना हार्ड है, ये सोचकर ही मैं डर जाता हूं।

निश्चय ही महिलाये बहुत मजबूत है और सम्मान की हकदार है। पर मेरा ये कहना है कि क्या ये माहिलाओं पर जुल्म नही है। ऐसा प्रथा बनाया ही क्यों गया, जिसमे सिर्फ महिलाएं ही व्रत रहती हैं, पुरूषो के लिये तो ऐसा कोई नियम नही बना है।

क्या सारा ठेका सिर्फ महिलाओं ने ही ले रखा है?

तीन तलाक को महिलाओं पर जबरन थोपा गया था, इसलिए फाइनली सुप्रीम कोर्ट को इसमे हस्तक्षेप करना पड़ा। लेकिन यहाँ ऐसा नही है, फ़िर भी आज के समाज मे यह भी एक कुप्रथा ही नजर आती हैं, जिसका सुधार होना जरूरी है।
वैसे यह मेरा व्यकितगत राय हैं, जरूरी नही कि सभी इससे सहमत हो।

मुझे याद है कि मेरी माँ हम दोनों भाईयों के लिए व्रत रहती थी, कई बार भयानक तबियत भी खराब हो जाती थी, फिर भी दवा भी नही लेती थी। मैं कहता हूं कोई भी भगवान ऐसा थोड़े ही कहता होगा कि आप अपनी जान जोखिम में डाल दो। मेरी पत्नी हफ्ते भर से ही परेशान हैं कि तीज का व्रत आ रहा है। मैंने बोला कि अगर तुमसे नही हो रहा है तो छोड़ दो। आखिर कुछ परेशानी हुई तो मुझे ही तो दौड़ना होगा।

यही हाल बहुत सी महिलाओ की है, उनकी इच्छा तो नही है, फिर भी वो समाज के डर से या परिवार के डर से या भगवान के डर से वो किसी तरह इस व्रत को रहती हैं।

मैं ईमानदारी के साथ इस व्रत का विरोध करता हूँ क्योकि,

मैं अपने को उन महिलाओं के जगह रखकर देखता हूं तो लगता है कि मैं इस व्रत को नही कर पाऊंगा तो कैसे दूसरो के लिए सही है।

नहीं तो एक ऐसी ही प्रथा पुरुषों के लिए भी बनाई जाये कि अब वो भी साल में दो व्रत, जिसे निराजल व्रत कहते हैं, रहेंगे एक बार अपनी पत्नी के लिए और एक बार अपनी बेटियों के लिये।

तभी तो समाज मे बराबरी आयेगी, और सही पता चलेगा कि निराजल व्रत किसे कहते हैं। मजे की बात तो ये है कि इन कुरीतियों के समर्थन के लिए भी सामाजिक ठेकेदार हर कदम पर आपसे ताना- कसी करने के लिए खड़े मिलेंगे |

यहाँ हमेशा ऎसा ही होता हैं, हमेशा हर परीक्षा स्त्रियो को ही देना पड़ता हैं, शायद इसलिये क्योंकि अभी भी भारत पुरुष प्रधान देश है। माता सीता को भी अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी। भरी सभा में द्रौपदी को दांव पर लगा दिया गया था और भरी सभा में ही चीर हरण हुआ था।

लेकिन समय बदल रहा है, आशा करता हूँ कि एक दिन वास्तव में सब सही होगा। लेकिन उसके लिये हम सभी को अपनी मानसिकता बदलनी पड़ेगी।

क्योंकि हम लोगो की भी अपनी माँ, बहन,बेटी हैं। और यह हमें उनके लिए करना है।