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क्या नोटबंदी से कालेधन पर सच में लगाम संभव ? - Taaza Tadka
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क्या नोटबंदी से कालेधन पर सच में लगाम संभव ?

इसे हम अपना दुर्भाग्य कहें या औरों की समझदारी पर लगा पर्दा जिसकी वजह से लोग आज तक ये न समझ सके की डिमोनेटाइज़ेसन या फिर नोटबंदी अकेले ही काला धन रोकने में सक्षम नहीं होगी| संयोग और आश्चर्य की बात तो ये है की जाने अनजाने में हमारे देश की सबसे बड़ी बैंक ने भी इस बात की पुष्टि की है| आज के अखबारों में भर भर कर SBI यानी स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने इस बात को सार्वजनिक किया है की पिछले दो हफ़्तों में किस तरह के और कितने रुपये का लेन-देन पुरे भारत वर्ष में हुआ है|
SBI के इस विज्ञापन को अगर एक आम आदमी की भांति समझने की कोशिश करें तो हम ये देखेंगे की पुरे देश में जीतनी राशियां जमा कराई जा रही हैं उनसे कहीं ज्यादा लोगों ने धन की निकासी की है| ऐसा माना जाता है और हमारे देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली जी का भी ये कहना है की स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया पुरे देश के बैंकिंग प्रोसेस का कुल २०% से भी ज्यादा का हिस्सा संभालती है| इसका सीधा मतलब यह हुआ की अगर हम SBI के लेन-देन को सही समझते हैं तो पुरे देश में चल रहे बैंकिंग द्वारा हो रहे धन जमा और निकासी को बेहतर समझ सकेंगे|

निचे दी गयी तस्वीर आज के हिंदी समाचार पत्र ‘दैनिक जागरण‘ से ली गयी है| अगर आप इसको ध्यान से देखें तो जानेंगे की पुरे देश में SBI के द्वारा कुल 3,90,57,000 बार नगदी जमा कराये गए और कुल 3 ,29,90,000 बार नगदी की निकासी की गयी|

यहाँ जरूर ये लगता है की ज्यादा लेन-देन नगदी के जमा कराने की है पर जैसे ही हमारी नज़र इस बात पर जाती है की एटीएम (ATM) के जरिये कितने नगदी लेन-देन हैं, नज़रें वोहीं पर रुक जाती हैं और दिमाग सोचने पर मजबूर हो जाता है| सोचने वाली बात ये है की SBI के एटीएम के जरिये लेन-देन का ज्यादा मतलब होता है नगदी की निकासी जिसको बैंक अलग नाम (एटीएम) से बता रही है| इस माध्यम से सबसे ज्यादा नगदी के लेन-देन सामने आएं हैं जो की अमूमन हुए नगदी निकासी का लगभग ढाई से तीन गुना है| इसके अलावा ये कहना गलत नहीं होगा की जो भी नदगी बदले गए हैं या बदले जा रहे हैं वो काला धन का हिस्सा नहीं माने जा सकते|

अगर हम ये समझ लें की औसतन धन जमा और धन निकासी की राशियाँ अमूमन बराबर ही होती हैं तो ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा की पिछले दो हफ़्तों में लोगों के जितने पैसे बैंकों में जमा किये हैं उससे कहीं ज्यादा पैसों को बैंकों से निकाला है| अर्थात, जितने 500/1000 के नोट्स बैंकों में वापस आये होने उससे कहीं ज्यादा नए नोट्स मार्केट में वापस आ चुके हैं| अगर सूत्रों की मानें तो ये नए नोट्स मार्केट में पुराने नोटों के बदले कॉमिशन पर दिए जा रहे हैं और बड़े आसानी से काले धन को सफ़ेद किया जा रहा है| कई बार ऐसे समाचार पढ़ने को मिल रहे हैं की लोगों ने पुराने दिनों की लेन-देन दिखा कर बिज़नस माध्यम से पुराने नोटों का इंतेजाम करना शुरू भी कर दिया है और इसका सबसे बड़ा उदहारण है सर्राफा बाजार जिसमे कुछ दिनों पहले तक पुराने नोटों को बदलने की होड़ सी लगी थी| अगर ऐसा ही चलता रहा और अगर SBI के द्वारा विज्ञापित लेन-देन की संख्यायों को मानक माना गया तो काला धन वापस हमारे सिस्टम में आना बहोत दूर की बात होकर रह जाएगी और जो आएंगे भी वो अपना रंग बदल कर आएंगे जिसपर सरकार कुछ ज्यादा नहीं अंकुश नहीं लगा सकेगी| मतलब साफ़ है, हम आज इस अभियान से जीतनी उम्मीदें लगा कर बैठे हैं वो सब धरी की धरी रह सकती हैं|

अभी भी देर नहीं हुयी है| सरकार को ये जल्द ही समझना होगा की सिर्फ नोटबंदी से काले गहन पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लगाया जा सकता| इसके लिए बहोत जरुरी है की उन सभी माध्यमों पर जैसे खास तौर पर सर्राफा और रियल एस्टेट के चल रहे तौर तरीके पर अंकुश लगाया जाए और कुछ ऐसे ठोस कदम उठाये जाएँ जिससे जिन लोगों ने भी काले धन को सोने या फिर संपत्ति के रूप में छुपा रखा है उन सभी का पर्दा साफ़ हो और वो लोग जो अभी तक अपने कमाए हुए पैसों पर कर अदायगी नहीं कर रहे थे उनकी नकेल कंसी जाये|

जब तक इन सभी माध्यमों को एक साथ नहीं धर दबोचा जायेगा, काले धन का निर्माण करने वाले रास्ता निकालते ही रहेंगे और अगर हम ऐसे ही धीरे-धीरे एक एक करके कदम उठाएंगे तो कालेधन की अंततः सफ़ेद होने का कठिन पर संभव मौका मिलता रहेगा पर आज का आम आदमी जो आज जगह जगह रोता दिखाई दे रहा है वो कभी खुश नज़र नहीं आ सकेगा क्योकि उसको हमेशा सरकार के ऐसे ठोस क़दमों की मार सहनी होगी और जो कमजोर इस मार को नही सह सकेगा वो बुरी मौत मार भी जायेगा|