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दिल्ली में गठबंधन होगा या नहीं? कयास और समीकरण शुरु हो गए..

दिल्ली मे साल 2020 एक बार फिर से चुनावी रंग में रंगेगा और इसकी शुरुआत ही राजनीति से होगी। फरवरी-मार्च के आसपास दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं, यानी की बहुत से लोगों की परीक्षाएं होनी हैं, पिछली बार यानी की 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने 70 में से 67 सीटें जीत कर इतिहास रच दिया था। इस जीत में उन्होंने मोदी लहर को भी फ्लॉप कर दिया था। लेकिन क्या ये जादू इस बार भी जनता पर चलेगा या फिर राष्ट्रप्रेम का मुद्दा लाकर फिर से बीजेपी चुनाव प्रचार करेगी और इस किले को फतेह कर लेगी। ये तो बीजेपी और आम आदमी पार्टी की बात रही, इन दोनों के लिए दिल्ली में चुनाव में जीता बहुत जरूरी है, क्योंकि बीजेपी इस वक्त दिल्ली में ज्यादा कमाल नहीं कर पा रही है, हालांकि लोकसभा में सातों सीटें जरूर जीती थी लेकिन विधानसभा में गणित अलग हो जाता है। लोकसभा के चुनाव में कोई भी अरविंद केजरीवाल के नाम पर नहीं गया था सबको उस वक्त राहुल गांधी या नरेंद्र मोदी में से एक को चुनना था।

अगर बात दिल्ली की है तो पिछले 5 सालों से बहुत ही खट्टी मीठी सरकार आम आदमी पार्टी की चली है, कई पुरान साथी अलग हुए, आंदोलन की आग भी काफी हद तक बुझ सी गई है। लेकिन केजरीवाल का जादू किस हद तक जाने वाला है ये अभी कहना मुश्किल है, बेशक हो सकता है कि उनके सत्ता में वापसी की उम्मीदें हो, लेकिन पिछले चुनाव जैसे परिणाम मिलने की उम्मीद काफी कम है। 2015 में एकदम नए राजनीति में आए अरविंद केजरीवाल के इतने दुश्मन नहीं थे, लेकिन अब कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे कई नाम दुश्मनों की लिस्ट में है। वहीं प्रधानमंत्री मोदी की भी लोकप्रियता आंकड़ों में और न्यूज चैनलों में बड़ी हुई नजर आई है।

ये तो बात हुई बीजेपी और आम आदमी पार्टी की लेकिन एक पार्टी और भी है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। ये पार्टी देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी ही है। दिल्ली के विकास में स्वर्गीय शीला दीक्षित का नाम बहुत मायने रखता है। लेकिन वो अब इस दुनिया में नहीं है, ऐसे में कांग्रेस की तरफ से दिल्ली विधानसभा चुनाव में कमान किसे मिलेगी। अजय माकन, पीसी चाको, लवली या फिर कोई और नेता सामने आएगा। एक कयास ये भी है कि दिल्ली में अबकी बार गठबंधन होने की संभावना है। लोकसभा चुनाव के वक्त भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच में गठबंधन होते होते रह गया था। लेकिन उस वक्त शीला दीक्षित इसके खिलाफ थी।

जब से दलों को विधानसभा चुनाव फरवरी में कराने के संकेत मिले हैं उसके बाद से ही सभी राजनीतिक दलों ने सियासी सक्रियता बढ़ा दी है। इस कड़ी में गठबंधन की योजनाओं पर भी विचार शुरू हो गया है। दिल्‍ली में शीला दीक्षित के निधन के बाद सुगबुगाहट थी कि चुनाव में कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन होगा। लेकिन अभी तक तो दोनों दलों की तरफ से इसके संकेत नहीं मिले हैं।दोनों दलों की ओर से इस तरह के किसी भी कदम की तैयारी नहीं की गई है। चुनाव के लिए कम समय को देखते हुए दोनों दलों का अलग अलग लड़ना तय माना जा रहा है। या फिर हो सकता है कि दोनों दल पोस्ट पोल अलायंस में जाएं। कांग्रेस को दिल्लीवालों के सिंपथी वोट की उम्मीद है, तो वहीं बीजेपी फिर से राष्ट्रवाद का राग अलाप सकती है। वहीं केजरीवाल की तरफ से काम के दम पर और साफ राजनीति का ही मुद्दा सबसे अहम रहेगा।

सत्‍ता वापसी के सभी प्रयास तेज

दिल्‍ली में केजरीवाल सरकार का कार्यकाल फरवरी में पूरा हो रहा है। दिल्‍ली चुनाव आयोग कार्यालय के संकेतों के तहत फरवरी में विधानसभा चुनाव होने की तैयारी दिख रही है। कम समय के कारण आम आदमी पार्टी ने अपने मुख्‍यमंत्री पद के चेहरे के तौर अरविंद केजरीवाल को पेश किया है। पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्‍ली में कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन होते होते रह गया था। चुनाव परिणाम में सभी 7 लोकसभा सीटें नरेंद्र मोदी के खाते में गई थीं। जानकारों के मुताबिक चुनाव परिणाम के बाद आप को दिल्‍ली में अपनी जमीन खिसकती हुई दिख गई थी। स्थिति को भांपते हुए इन नेताओं आगामी विधानसभा चुनाव में जी जान लगानी शुरु कर दी है। पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि वो इस चुनाव में ठोस रणनीति के साथ उतर रहे हैं और सभी 70 सीटे जीतेंगे। हालांकि, चुनाव पूर्व गठबंधन पर किसी भी तरह की सकारात्‍मक बात अब तक सामने नहीं आई है।

पिछले सबक कांग्रेस के काम आएंगे

जानकारों का कहना है कि अपने घटते जनाधार को बचाने के लिए जूझ रही कांग्रेस दिल्‍ली में अपनी कद्दावर नेता शीला दीक्षित के निधन के बावजूद किसी से गठबंधन के मूड में नहीं है। यही वजह है कि पार्टी ने चुनाव पूर्व गठबंधन को लेकर अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है। हालांकि इसके पीछे का कारण ये भी हो सकता है कि अभी कांग्रेस हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र चुनाव पर ध्यान लगा रही हो। ऐसे में कहीं वो दिल्ली हाथ से न खो दें क्योंकि चुनाव के लिए समय बहुत कम बचा है। अगर पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो दिल्‍ली में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी से ज्‍यादा वोट प्रतिशत हासिल हुआ था। ऐसे में कांग्रेस का मनोबल बढ़ा हुआ है और वो किसी भी दल से गठबंधन पर विचार नहीं कर रही है। वहीं पिछले यूपी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़कर करारी हार का सामना कर चुकी है। ऐसे में वो अपने पिछले सबक से सीखकर अकेले लड़ने की तैयारी में हो सकती है। लेकिन लोकसभा चुनाव राहुल गांधी बना नरेंद्र मोदी था, लेकिन दिल्ली में अरविंद केदरीवाल का भी एक रुतबा है, उनके भी समर्थक है।

जेडीयू अकेले लड़ेगी चुनाव

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव के लिए जनता दल यूनाइटेड ने अपना रुख साफ कर दिया है। जेडीयू के दिल्‍ली प्रदेश प्रभारी संजय झा ने पिछले दिनों कहा था कि केंद्र में एनडीए के साथ वो बने रहेंगे, लेकिन दिल्‍ली में विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी गठबंधन से अलग होकर लड़ेगी। उनका मानना है कि दिल्‍ली में इस बार जेडीयू का शानदार प्रदर्शन देखने को मिलेगा।

जेजेपी और बसपा एक साथ लड़ेंगे

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन के पांसे जरूर फिट नहीं बैठ रहे हैं, लेकिन हरियाणा में जननायक जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन बन गया है। पिछले दिनों जेजेपी के दुष्‍यंत चौटाल और बसपा के दिग्‍गज नेता सतीश चंद्र मिश्र ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में बहुमत के साथ जीत हासिल करने के लिए एक साथ लड़ने का ऐलान किया था। दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर भी सामंजस्‍य बन गया है।