भारत में आजादी के बाद कई ऐसे राजनेता हुए हैं, जो कुछ खास वजहों से हमेशा याद किए जाते रहेंगे। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कुछ ऐसे काम किए, जिनकी वजह से वे अब किस्सों का हिस्सा बन गए हैं। इन्हीं में से एक थे मोरारजी देसाई, जो 81 साल की उम्र में भारत के चौथे प्रधानमंत्री बने थे। मोरारजी देसाई भारत के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने 1977 से 1979 तक देश के प्रधानमंत्री की जिम्मेवारी संभाली थी।
बने थे कैबिनेट मंत्री
हालांकि, मोरारजी देसाई अपने कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाए थे, क्योंकि चौधरी चरण सिंह से उनका मतभेद हो गया था और उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। देसाई प्रधानमंत्री बनने से कुछ समय पहले तक जेल में भी बंद रहे थे। उन्हें 1975 से 1977 तक का वक्त एकांतवास में भी बिताना पड़ा था। पूर्व में मोरारजी देसाई कांग्रेस में ही थे और वे जवाहरलाल नेहरू के साथ इंदिरा गांधी के कैबिनेट में मंत्री भी रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम में लिया हिस्सा
मोरारजी देसाई का संबंध गुजरात से था। गुजरात के भदेली गांव में उनका जन्म हुआ था। अपने पिता से उन्होंने सच्चे मूल्यों की शिक्षा ली थी और इसका उनके जीवन पर गहरा प्रभाव भी पढ़ा था। करीब 12 वर्षों तक मोरारजी देसाई ने डिप्टी कलेक्टर के तौर पर काम किया था। हालांकि, बाद में वे राजनीति में आ गए थे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। मोरारजी देसाई एक बहुत ही सक्रिय नेता थे। इसी वजह से उन्हें जवाहर लाल नेहरू के साथ इंदिरा गांधी की कैबिनेट में भी शामिल होने का मौका मिला था।
इमरजेंसी का विरोध
मोरारजी देसाई को 1956 में नेहरू मंत्रिमंडल में वाणिज्य और उद्योग मंत्री की जिम्मेवारी दी गई थी। 1963 तक वे इस पद पर बने हुए थे। उन्होंने इसके बाद इस्तीफा दे दिया था। मोरारजी देसाई 1967 में उप प्रधानमंत्री भी बनाए गए थे। हालांकि, अपने विद्रोही स्वभाव के कारण 1969 में वे इंदिरा गांधी और कांग्रेस के खिलाफ चले गए थे। उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इंदिरा गांधी ने जब 1975 में देश में आपातकाल लगा दिया, तो जिन लोगों ने उसका विरोध किया, उनमें मोरारजी देसाई भी बहुत आगे थे। आपातकाल के खिलाफ वे बहुत ही मुखर थे। ऐसे में उन्हें 1975 में गिरफ्तार कर लिया गया था और 1977 तक उन्हें एकांत में कैद करके भी रखा गया था। बाद में जब कई दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई तो वे इसमें शामिल हो गए और इसमें बेहद सक्रिय भी रहने लगे।
प्रधानमंत्री बनने पर
आखिरकार जब जनता पार्टी को जीत मिली तो मोरारजी देसाई इस देश के प्रधानमंत्री बन गए। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोरारजी देसाई ने कई अहम फैसले लिए, लेकिन उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया, जिसके बारे में बहुत ही कम लोगों को याद होगा। उस वक्त उन्होंने भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी नटवर सिंह का तबादला ब्रिटेन से जांबिया कर दिया था। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस अधिकारी का तबादला करने की मोरारजी देसाई को क्या सूझी? दरअसल, हुआ यह था कि किसी ने मोरारजी देसाई को बता दिया था कि जिस दिन इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था, उस दिन इसकी खुशी में नटवर सिंह ने जश्न मनाया था। उन्होंने इस खुशी में अपने घर पर शैंपेन पार्टी दी थी। मोरारजी देसाई को जब यह जानकारी मिली तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। उन्होंने ठान लिया था कि वे उससे बदला जरूर लेंगे। इस तरह से उन्होंने अपना बदला लेते हुए सबसे पहले नटवर सिंह का तबादला ब्रिटेन से जांबिया कर दिया।
इन्हें भारत आने से किया मना
फिर 1978 में जांबिया के प्रधानमंत्री का भारत दौरा हुआ। उस वक्त यह परंपरा चली आ रही थी कि जब भी किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष भारत की यात्रा पर आता था तो उस वक्त उस देश में तैनात भारत के उच्चायुक्त या राजदूत भी उनके साथ भारत आया करते थे। ऐसे में नटवर सिंह को भी जांबिया के प्रधानमंत्री के साथ भारत आना था। उन्होंने नटवर सिंह को आने से मना कर दिया। इसके बावजूद नेटवर्क सिंह वहां के प्रधानमंत्री के साथ भारत आ ही गए। इसे मोरारजी देसाई की बड़ी बेज्जती के रूप में देखा गया था।
नटवर सिंह को आदेश
इससे नाराज होकर मोरारजी देसाई ने नटवर सिंह को अगले दिन सुबह 8:00 बजे अपने निवास पर आने का आदेश दिया था। बताया जाता है कि अगले दिन जब नटवर सिंह उनके निवास पर पहुंचे थे तो वहां उनके साथ मोरारजी देसाई द्वारा बहुत ही रूखा बर्ताव किया गया था। इस तरह से मोरारजी देसाई ने इमरजेंसी के दौरान जश्न मनाने पर एक विदेश सचिव से इस तरह से प्रधानमंत्री बनने पर बदला लिया था।