भारतीय जनता पार्टी के साथी और काफी पुराने दोस्त नीतीश कुमार भी अब अलग बोली बोल रहे हैं। नीतीश कुमार की भाषा राहुल गांधी से मिलती जुलती है। नीतीश कुमार ने कहा है कि अगर विपक्ष पेगासास जासूसी कांड की जांच मांग रहा है तो जांच होनी चाहिए। जिस मुद्दे पर संसद में सरकार की सांस अटकी है उसपर नीतीश की जुबान से भी ऐसे शब्द BJP के लिए मुश्किलों भरा है। हाल फिलहाल में नीतीश कुमार कई बार ऐसी बातें बोल चुके हैं जो कि भाजपा की बातों से काफी अलग है। तो इससे क्या समझें कि बिहार की हवा में बदलाव आ रहा है?
जाति गणना पर मंत्रणा
पेगासस पहला मामला नहीं है जब नीतीश के बगावती बोल सामने आ रहे हैं। जब केंद्र ने कहा कि अब जनगणना में ओबीसी नहीं गिनेगा तो नीतीश ने अलग बोला। उसमें तेजस्वी से ताल मिलाया कि गिनती होनी चाहिए। यहां तक खबर आ गई कि अगर केंद्र जाति आधारित जनगणना नहीं करेगा तो बिहार सरकार करेगी। कहने वाले कह सकते हैं कि अपने ओबीसी वोटबैंक के लिए बोलना नीतीश की सियासी मजबूरी थी। लेकिन नीतीश ने बिहार में बड़ा भाई हो चुकी भाजपा के स्टैंड के खिलाफ जाकर बोला, ये भी तो संदेश ही है।
जनसंख्या पर योगी को सीख
साढ़े चाल साल तक यूपी में सब चंगा सी का ढोल बजा रही भाजपा ने जब चुनाव से ठीक पहले हर प्रॉब्लम की जड़ को पॉपुलेशन कह दिया है। मतलब परेशानियों के लिए पब्लिक ही जिम्मेदार है सो जनसंख्या नियंत्रण जरूरी है, तो नीतीश ने वहां भी मजा किरकिरा कर दिया। मुस्लिम ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं, भक्तों की इस भावना को बिल से भुनाना चाह रही भाजपा से नीतीश ने कह दिया ऐसे न हो पाएगा, महिलाओं को शिक्षा दीजिए।
हाल ही में नीतीश की ओमप्रकाश चौटाला से भी मुलाकात हुई। नीतीश ने पुराने संबंधों का हवाला दिया लेकिन इन तमाम सियासी फैसलों की टाइमिंग पर सवाल तो लाजिमी है। कैसे भूल सकते हैं कि चिराग के साथ चुनाव में भाजपा को नीतीश ने चित किया। सियासी राम के हनुमान को कहीं का न छोड़ा। ऐसी गोटी बिठाई कि न राम कुछ बोल पाए, न हनुमान कुछ कर पाए। चिराग ने 2020 विधानसभा चुनाव में नीतीश के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे। ऐसा माना जाता है कि आज नीतीश बिहार के बॉस होने के बजाय छोटे बाबू हैं तो इसके पीछे चिराग की लगाई आग है। अलग लड़कर चिराग ने कम से कम 30 सीटों पर नीतीश को नुकसान पहुंचाया और अब तो चिराग ने खुद कह दिया है कि जो किया भाजपा को बताकर किया था।
नीतीश पहले भले समझने से इंकार करते रहे, लेकिन बिहार का खेल खत्म होने का बाद इस बात से कैसे आंख फेर सकते हैं कि उन्हें तीन नंबर के पोडियम पर भाजपा ने धकेला है। नीतीश ये भी जानते हैं कि तीन नंबर के नीचे कोई और पायदान नहीं होता। यहां से नीचे गिरे तो गायब हो जाएंगे। पेगासस, जाति गणना, चौटाला और यूपी जनसंख्या ड्रॉफ्ट बिल पर नीतीश के स्टैंड को ललकार नहीं तो वजूद के लिए सियासी दरकार समझिए। नीतीश कुमार इतनी जल्दी हथियार डाल देंगे, इसकी उम्मीद भाजपा में किसी ने की थी तो वो आज अपनी भूल पर पछता रहा होगा।
पलटी मारने की तरफ है नीतीश?
ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि भाजपा के खिलाफ जाकर नीतीश कुमार फिर पलटी मारने का संकेत दे रहे हैं। लेकिन पॉलिटिक्स में पैंतरों का अपना प्रभाव होता है। वैसे भी आजकल लालू यादव बड़े एक्टिव हैं। कभी मुलायम-पवार से मिल रहे हैं तो कभी चिराग-तेजस्वी में दोस्ती करा रहे हैं। बरसात का मौसम बिहार के एक बड़े इलाके की जमीन का लुक-फील बदलता है। खेतों के मेढ़ टूटते हैं। तेरा-मेरा बांटने वाली लाइन मिट जाती है। बाढ़ में सब सपाट। बरसात के बाद सीमाएं फिर खींची जाती हैं। इस जमीन की सियासत का भी यही स्वभाव है।