हैदराबाद की डॉक्टर प्रियंका रेड्डी रेप और मर्डर केस की खबर आने के बाद कुछ भी कहना बेवकूफी जैसा लगता है। हम इस देश की महिलाओं को आत्मनिर्भर होने की सलाह देते हैं, हम कहते हैं कि लड़कियां चांद तक पहुंच गई है लेकिन ये सब गलत है। चांद तक तो छोड़ो हमारे देश की लड़की रात को सुरक्षित और जिंदा अपने घर तक नहीं पहुंच पा रही है। घर से कुछ मील की दूरी पर लड़कियों को जिंदा जला दिया जा रहा है, रेप किया जा रहा है। लड़कियां घर से ऑफिस के लिए निकलती हैं और सही सलामत, जिंदा घर वापिस आ जाए तो लगता है कि जैसे कोई जंग जीत ली है। ऐसा करना किसी लड़की के लिए आसान नहीं है। संसद में गोडसे, जेएनयू सबकी बात होती है और बड़ी बड़ी महिला नेता इस मुद्दे पर काफी कुछ कहती है लेकिन महिला सुरक्षा के नाम पर वो चुप हो जाती है। चाहे वो किसी भी पार्टी की हो, वो कुछ नहीं कह पाती है क्योंकि किसी भी पार्टी के राज में चाहे आज की तारीख में हो या इतिहास में महिलाएं कभी सुरक्षित नहीं रह सकी है।
किसी को शायद बचा कर घर जा रही थी
एक लड़की जो डॉक्टर थी, अपने क्लिनिक से मरीज को देख कर वापिस घर जा रही थी। रास्ते में उसका स्कूटर पंक्चर होता है, वो अपनी बहन को फोन करती है कि स्कूटर सही नहीं हो रहा है। वो उसे वहां पर छोड़ कर भी नहीं आ सकती क्योंकि कोई चोरी कर लेगा। ये बातें करीब साढ़े नौ बजे की है। वो लड़की अपनी बहन को बताती है, दो अजनबी लोग उसकी मदद करने के लिए कह रहे हैं, लेकिन वो उन पर भरोसा नहीं कर पा रही है। इतने में अचानक से उसका फोन बंद होता है। घर वाले रात को एक बजे मिसिंग की शिकायत दर्ज करवाते हैं और अगली सुबह उन्हें उस लड़की की जली हुई लाश सड़क के किनारे पड़ी हुई मिलती है।
तो हां है हमारा देश महान, जहां पर लड़कियों को चांद पर भेजने की बात होती है। लेकिन शाम के बाद बेटियों के बलात्कार और जिंदा जलाने जैसी बातें तो मानो अब एक रोजमर्रा का हिस्सा बन गई है। ऐसे में सवाल किस पर करे क्योंकि कानून-व्यवस्था की बात करना ही गलती होगी। बलात्कारी पकड़े जाते हैं लेकिन सबूतों के अभाव में छूट जाते हैं। कई बार इन्हें सिलाई मशीन दे कर छोड़ दिया जाता है और ज्यादातर तो पकड़े ही नहीं जाते है। हम लोग सिर्फ सोशल मीडिया पर वी वॉन्ट जस्टिस के हैशटैग के साथ पोस्ट लिखते हैं और भूल जाते हैं। या फिर दूसरी घटना का इंतजार करते हैं।
क्या होगा इस केस का
हर केस की तरह ये भी वैसे ही फाइलों में दफ्न हो जाएगा और गुनहगार आराम से घूमते रहेंगे। न सबूत मिलेंगे और न ही किसी को सजा होगी। इस लेख को लिख कर मैं आपको खबर नहीं देना चाह रहा हूं क्योंकि किसी भी दिन का अखबार उठा कर देख लो दावे के साथ कह सकता हूं कि एक न एक महिला के साथ रेप या छेड़खानी की खबर लिखी होगी। ये लेख सिर्फ अपनी बेबसी दिखाने के लिए लिख रहा हूं। क्योंकि इससे ज्यादा मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूं। लोगों की सोच पर लगे ताले खोल खोल कर थक गया हूं। इस गंदगी के बारे में कई बार आवाज उठानी चाही है लेकिन कुछ नहीं कर पाया। इसके लिए पुलिस, सरकार, कानून, जिस पर भी मन करे ठीकरा फोड़ सकते हैं। लेकिन हमें ये अपने ऊपर ही लेना होगा। अपने बच्चों को ही सीख देने की जरूरत हैं। कई पीढ़ियां तो खराब हो गई लेकिन अब जो पीढ़ि आ रही है उसके लड़कों को समझाने की जरूरत है, कि लड़की कोई खिलौना नहीं है या कोई वस्तू नहीं है जिसे अपनी हवस मिटाने के लिए इस्तेमाल कर लिया जाए।
अगर गलत है तो वो हर मां है
आपको क्या लगता है कि ये बलात्कारी एक दिन में पैदा हो जाते हैं? नहीं इन्हें हमारा समाज ही तैयार करता है। ये बलात्कारी पहले अपने सबसे करीबी लोगों को गलत तरीके से छू कर, फिर गली में अकेली लड़की को देख कर सीटियां बजाते हैं। धीर-धीरे इनका हौसला बढ़ने लगता है तो फिर अजनबी लड़कियों को छूना शुरू करते हैं और फिर एक दिन मौका पा कर बलात्कार हो ही जाता है। एक लड़के के अंदर हो रहे बदलाव को उसकी मां या बहन देख और समझ भी रही होती है मगर चुप रहना वो अपना धर्म समझती हैं। लेकिन अगर जब उसने किसी लड़की की तरफ आंख उठा कर देखी थी तो तभी उसकी मां ने एक थप्पड़ कस दिया होता तो ये नौबत नहीं आती।
बस आज के इस लेख के जरिये मैं उन माओं, बहनों के लिए कहना चाहता हूं कि वो थोड़ी शर्म कर लें। अपने पल्लू में जिस बेटे को संभाल कर मां रखती है वो कब किसी और लड़की की इज्जत पर हाथ डालने लग जाता है इसका ध्यान रखना भी मां का काम होता है। एक मां अपने बेटे को बहुत लाड करती है, मेरी भी मां ने किया है, लेकिन मां को ये भी सीख देनी होगी कि दूसरे की बेटी की इज्जत करना भी तुम्हारी जिम्मेदारी है। लड़की को चांद पर मत भेजो उसे बस सुरक्षित उसके घर जाने दो।