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शीतला सप्तमी की व्रत-कथा,पूजन विधि,पूजन सामग्री और शीतला माता की आरती

शीतला सप्तमी को मनाये जाने वाले इस व्रत की महिमा अपार है। इस व्रत में शीतला माता खुद अपने भक्तो को आशीर्वाद देने आती है। इस व्रत में हमे कोई जप-तप नहीं करने है और नहीं कोई उपवास करना है परन्तु फिर भी यह व्रत फलदायक है । यह व्रत गुजरात में काफी प्रचलित है।

शीतला सप्तमी के इस  व्रत में औरतों को कोई उपवास नहीं करना होता है। इसमें सुबह पूजा के बाद औरतें गौ माता को भोजन कराकर तभी खुद भोजन करती है। इसमें कई औरते जिनकी मन्नत होती है वो लोग ७ घर से पिछली रात का बना ठंडा खाना मांग करके लाती है,और वही खाना खाती है। वे लोग घर का खाना नहीं खाती है।शीतला  सप्तमी व्रत औरते अपने परिवार की सुख-शांति के लिए करती है।  

पूजन विधि :

श्रावण मास की सप्तमी(हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से भादव मास की सप्तमी) को ये त्यौहार मनाया जाता है।

शीतला सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठकर औरतें माँ शीतला माता की पूजा करती है।शीतला सप्तमी के दिन औरतें पिछली रात का बना ठंडा खाना ही खाती है । ये त्यौहार सामन्यतः गुजरात में मनाया जाता है। गुजराती औरतें शीतला सप्तमी को काफी मान्यता देती है।  इस दिन पूरा परिवार मिलकर ठंडा खाना ही खाता है। किसी के घर चूल्हा नहीं जलता है।

पूजन सामग्री :

शीतला सप्तमी व्रत में ज्यादा कोई चीजों की जरुरत नहीं पड़ेगी। इसमें औरते पिछले दिन का बना ठंडा खाना ही वो लोग शीतला माता को चढाती है। इसमें खाश करके गुजराती औरतें बाजरी के आटे को गुड़ और घी में मिलाकर उसका प्रसाद माता को चढ़ाया जाता है। ऐसा मान जाता है की ये प्रसाद माता को बोहोत ही प्रिय है।  

व्रत कथा :

वडवली नामक एक गाँव था। उस गाँव में एक परिवार रहता था। जिसमे एक सास ,दो बेटे और दो बहुएं रहते थे। दोनों बहुओं को एक-एक लड़के थे। बड़ी बहु सुनंदा का स्वभाव बहुत ही झगड़ालू था। वही छोटी बहु अनिता का स्वभाव बोहोत ही शांत और दयालु था। बड़ी बहु के ऐसे स्वभाव की वजह से घर में हमेशा अशांति का माहौल रहता था।
रांधन छठ के दिन सासु माँ ने अनिता को खाना बनाने के बैठा दिया। अनिता सुबह से लेकर साम तक खाना  बनाती रही और वो काफी थक चुकी थी फिर भी वो हटी नहीं। अब खाना बनाते-बनाते उसे काफी रात हो गयी और उसका लड़का रोने लगा। अनिता अपने बेटे को चुप करने चली गयी। अनिता अपने बेटे को दूध पीला ही रही थी की उसकी आँख लग गयी। क्योंकि वह काफी थक चुकी थी। अब शीतला माता रात को अपने भक्तो के घर जाने के  लिए निकल गए। 
घूमते-घूमते माता अनिता के घर आ पहुंची परन्तु अनिता के घर का चूल्हा जल रहा था।  जिसके कारण शीतला माता का पूरा शरीर आग की लपटों से जल गया। जिससे उन्हें काफी पीड़ा साहनी पड़ी। शीतला माता ने क्रोधित होकर अनिता को श्राप दे दिया। इस श्राप के प्रकोप से अनिता के बेटे की मौत हो गई। और उसके शरीर पैर उसी प्रकार के निसान पड़े जिस प्रकार माता शीतला के शरीर पर  पड़े थे।
अब अनिता फुट-फुट कर रोने लगी। उसको ये तो पता चला ही गया था की य माता शीतला का प्रकोप है। तभी वह उसकी सास आयी। उन्हें भी ये देखकर बोहोत दुःख हुआ। उन्होंने अनिता को सांत्वना देते हुए कहा कि ” बेटा इस संसार में दुःख सबको भोगना पड़ता है ,हमें इससे हार नहीं माननी चाहिए। उठो और जाओ शीतला माता के पास वो सबका भला करती है तुम्हारा भी भला करेंगी “। इतना सुनकर अनिता ने अपने मृतक बेटे को उठाया और एक टोपली में डालकर शीतला माता की तलाश में निकल पड़ी।
अनिता को सुबह से लेकर दोपहर हो गयी शीतला माता की तलाश करते-करते साम हो गयी पर शीतला माता नहीं मिली। अब रास्ते में आगे बढ़ने पर अनिता को तालाब मिले। वो दोनों तालाब पानी से पुरे भरे हुए थे। किंतु उन तालाबो का पानी कोई नहीं पिता। अगर कोई भूल से उस तालाब का पानी  पी भी लेता तो वो मृत्यु को प्राप्त हो जाता था।
अनिता को वह से गुजरते हुए दो तालाबों ने देखा और अनीता को तालाबों ने उसे बुलाया और पूछा की “बेहेन तुम खा जा रही हो ?” तो अनिता ने इसका उत्तर देते हुए की “में अपने पाप का निवारण पूछने शीतला माता के पास जा रही हु “। अनिता का जवाब सुनकर तालाबों ने अनिता से विनंती की “बेहेन हमने भी किसी जन्म में कोई पाप किया था? जिसकी सजा हमें मिली है। तो क्या तुम हमारे पाप का निवारण पूछ लोगी “?
अनिता ने उन्हें है करदी और वो आगे निकल गयी।आगे रस्ते में उसे दो बैल मिले उन दोनों बैलो के गले में घंटी बंधी हुई थी और वो दो बैल हमेदसा आपस में लड़ते ही रहते है। जब उन्होंने अनिता को देखा तो अपने पास बुलाया और उससे पूछा की “बहन तुम खा जा रही हो?” अनिता ने उन्हें बताया कि वो शीतला माता के पास जा रहि हु। तब बैलो ने उससे खा की “क्या तुम हमरे पाप का निवारण भी पूछ कर आएगी ?” तब उसके जवाब में अनिता ने हां करदी और वो वह से आगे चल पड़ी।
आगे रास्ते में अनिता एक बूढ़ी औरत मिली। जो अपने बालो को खुजा रही थी। शायद वो अपने बालो में पड़ी जुओ की वजह से परेशान थी। तभी उसकी नजर अनिता पे पड़ी,और उसने अनिता को अपने पास बुलाया और उससे पूछा की ” बेटा इस टोपली में क्या लेकर जा रही हो “? तभी अनिता ने सारी कहानी उस बूढ़ी औरत को सुना दी। पर उन्होंने उसकी बात न सुनकर अपने स्वार्थ को बढ़ावा देते हुए कहा की “बेटा जरा मेरे सिर में हाथ घूमा दो मुझे बोहोत परेशानी हो रही है। ”
अनिता को शीतला माता के पास जाने में देरी हो रही फिर भी उसने अपने बेटे को बूढ़ी  औरत की गोद में दे दिया और उनके सिर से जुए निकलने लगी। थोड़ी ही देर में अनिता उनके सिर से सारी जुए निकल दी।
जैसे ही उनके सर से सारी जुए निकल गयी और उनकी पीड़ा शांत हुई वैसे ही बूढ़ी औरत की गोद में पड़ा बच्चा सजीवन हो गया और तभी अनिता को ये यकीन हो गया की ये और कोई नहीं बल्कि शीतला माता ही है। तभी उसने उनके पैर छुए और आशीर्वाद लिया।
अनिता ने उन दोनों तालाबों के पाप का निवारण पूछा तब माता ने बताया की ” बेटी वो दोनों पिछले जन्म में शेठ हुआ करते थे वो दोनों कभी किसी कि मदद नहीं करते थे। इसलिए इस जन्म में उनके तालाब का पानी कोई नहीं पिता ” अब तू लौटकर तू उनके जल मेसे थोडा जल ग्रहण करना जिससे उसका जल पवित्र हो जायेगा।
अनिता ने बातो-बातो में उन दोनों बैलो के पाप का निवारण भी पूछ लिया तभी माता ने कहा की “बीटा वो दोनों पिछले जन्म में देव रानी जे ठानी हुआ करती थी और वो दोनों कभी एक दूसरे से सीधे मुँह बात भी नहीं करती थी वो दोनों हमेशा लड़ती थी इसलिए वो इस जन्म में हमेशा लड़ते रहते है “। अगर तुम जा उनके गले से वो घंटी खोल दोगी तो वे लड़ना बंद करेंगे और शांति से रहने लगेंगे।
अनिता अपने सजीवन बच्चे को लेकर घर की ओर लौटी तभी रस्ते में उसे बैल मिले और उसने उनके गले में बंधी घंटी खोल दी और वो लड़ना बंद हो। वो आगे चल पड़ी। आगे उसे तालाब मिले उसने उन तालाबों का पानी पीकर उन्हें अमृतमय बना दिया और उन तालाबों का पानी सबके पिने योग्य हो गया अपने सजीवन बच्चे को लेकर वो घर वापस आयी और पहले की तरह रहने लगी।
 
            शीतला माता अपने सभी भक्तो की हमेशा रक्षा करती है
 

शीतला माता की आरती :

 

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता | जय

रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,
ऋद्धिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता | जय

विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता | जय

इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता | जय

घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता | जय

ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता | जय

जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता,
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता | जय

रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता | जय
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता | जय

शीतल करती जननी तुही है जग त्राता,
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता | जय

दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,
भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता | जय