भारत अभी संकट के दौर से गुजर रहा है। एक तरफ वैश्विक महामारी कोरोना वायरस का संकट है तो दूसरी ओर पड़ोसी देशों से सीमा पर तनाव चल रहा है, वहीं तीसरा संकट देश की अर्थव्यवस्था का है जो कोरोना वायरस की वजह से और ज्यादा खराब हो गई है। लेकिन इन सबके बाद भी सियासत अपने रंग में डूबी हुई है। देश की 2 सबसे अहम पार्टियां भाजपा और कांग्रेस के बीच में रस्साकसी चल रही है। ताजा मुद्दा प्रियंका गांधी के सरकारी आवास का है। दरअसल केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की ओर से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को दिल्ली के लोधी स्टेट के सरकारी आवास को खाली करने का नोटिस आ गया है। नोटिस में प्रियंका को 1 महीने में बंगला खाली करने का आदेश दिया गया है और इस दौरान उनका जितना भी किराया बाकी है उसे भी भरना है। अब कांग्रेस पार्टी भाजपा पर राजनीतिक भेदभाव का आरोप लगा रही है तो भाजपा कानून का हवाला दे रही है। राजनीतिक उठापटक के बीच पूरा मामला समझना जरूरी है। प्रियंका गांधी को सरकारी बंगला दिया क्यों गया था और अब इसे खाली क्यों कराया जा रहा है?
क्यों दिया गया था प्रियंका गांधी को सरकारी बंगला ?
21 फरवरी 1997 में प्रियंका गांधी को सरकारी बंगला दिया गया था, क्योंकि उन्हें एसपीजी सुरक्षा मिली हुई थी। नियमों के मुताबिक एसपीजी सुरक्षा प्राप्त किसी भी शख्स के लिए सरकारी बंगले का प्रावधान है लेकिन जेड प्लस सुरक्षा वालों को ये सुविधा उपलब्ध नहीं होती है। क्योंकि अब प्रियंका गांधी के पास एसपीजी सुरक्षा नहीं है तो कानूनन प्रियंका गांधी को सरकारी आवास नहीं मिल सकता है उन्हें ये आवास खाली ही करना होगा जिसके लिए उन्हें नोटिस पकड़ा दिया गया है।
अब मामला कांग्रेस महासचिव से जुड़ा था तो इसका राजनीतिकरण तो होना ही था। कांग्रेस समर्थकों और नेताओं ने इसे भाजपा की करतूत बताया और कहा कि प्रियंका गांधी सरकार की खासतौर पर उत्तर प्रदेश की सरकार की घेराबंदी करती हैं इसलिए भाजपा ने उनपर राजनीति से प्रेरित कार्यवाही की है। वहीं भाजपा भी इस घमासान में जमकर सियासी वार कर रही है। कानून का हवाला देकर भाजपा कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर रही है। भाजपा और कांग्रेस के इस तनातनी के बीच अन्य दल पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं। जो हैरान कर रही है।
यूपी चुनाव पर है प्रियंका की पूरी नजरें
कांग्रेस और भाजपा के बीच में जारी इस सियासी जंग में माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी ये सरकारी आवास जल्द खाली कर देंगी और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में शिफ्ट हो जाएंगी। उत्तर प्रदेश की सियासत में खास दिलचस्पी रखने वाली प्रियंका गांधी का लखनऊ में रहना बहुत हद तक साफ कर रहा है कि कांग्रेस की पूरी नजर आगामी 2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों पर है। प्रियंका गांधी लगातार योगी सरकार को घेरती आ रही हैं जिससे उत्तर प्रदेश में पस्त पड़े कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को भी आस जगी है। कांग्रेस पार्टी जो अपना वजूद उत्तर प्रदेश में खोज रही थी वो अब प्रियंका गांधी के नेतृत्व में नए जोश के साथ सड़कों पर उतर रही है। प्रियंका गांधी के लखनऊ आने से भाजपा तो हरकत में आएगी ही साथ ही सपा और बसपा की नींदें भी उड़ जाएंगी।
प्रियंका गांधी ने कोरोना संकट के समय जो 1000 बसों को भेजा और योगी सरकार ने उनके नहले पर दहला मारते हुए उनकी मंशा पर जिस तरह सवाल उठाए उससे कहीं न कहीं कांग्रेस का विपक्षी चेहरा जरूर नजर आया है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में विपक्ष का प्रमुख चेहरा सपा और बसपा ही है जिसमें कांग्रेस ने नए ऊर्जा के साथ इंट्री मार ली है, जगजाहिर है कि कांग्रेस इस जोश को बनाए रखेगी और इसका पूरा असर उत्तर प्रदेश की राजनीति को नए समीकरण बनाने पर मजबूर कर देगी। प्रियंका गांधी को सरकारी बंगला जाने का फायदा या नुकसान किसे होगा ये तो नहीं कहा जा सकता लेकिन राजनीति के क्षेत्र में बदले की भावना हमेशा से रही है। अगर एक सियासी दल दूसरे के प्रति शिष्टाचार रखता है तो वो दल भी वही भावना रखेगा वरना जैसी करनी वैसी भरनी की कहावत राजनीति के गलियारे में बिल्कुल सटीक बैठती है।