शेर-ए-पंजाब के नाम से मशहूर महाराजा रणजीत सिंह एक ऐसे राजा थे जिन्होंने अपने कार्यकाल में पंजाब को एक मजबूत और बलशाली प्रांत बनाया। साथ ही अपने पराक्रम के बल पर उन्होंने अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के नजदीक भी नहीं आने दिया था। सिर्फ 20 साल की उम्र में ही राजा की उपाधि हासिल करके 40 सालों तक पंजाब पर अपना शासन कायम रखने वाले थे महाराजा रणजीत सिंह। साल 1839 में उनकी मृत्यु के बाद से आज तक उनके शौर्य की गाथाएं आज भी लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है।
सिर्फ 12 साल की उम्र में ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी और उसके बाद सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेकर महाराजा रणजीत सिंह ने अंतिम सांस तक दुश्मनों को धूल चटाते हुए अपनी वीरता की मिसाल कायम की थी। लेकिन ऐसे शूरवीर महाराज जिनके वीरता के अंग्रेज भी कायल थे, उन्हें एक बार 100 कोड़ों की सजा मिली थी। और वो हंसते हंसते ही उस सजा को कबूल भी किया था।
प्यार के लिए तैयार हो गए थे 100 कोड़े खाने को
ये सजा उन्हें उनके प्यार की वजह से थी। उन्हें एक 13 साल की नर्तकी और गायिका से प्यार हो गया था। महाराजा रणजीत सिंह एक ही मुलाकात में उनकी सुंदरता और आवाज के जादू में दीवाने हो गए थे। इस लड़की से शादी करने के लिए वो कोड़े खाने के लिए भी तैयार हो गए थे। ये लड़की अमृतसर की गुल बहार थीं और पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने उन्हें पहली बार एक शाही समारोह में गाते हुए सुना और देखा था। उसी समय महाराजा ने गुल बहार के करीब जाने की कोशिश की। वो उन्हें अपनी प्रेमिका बना कर रखना चाहते थे लेकिन गुल बहार ने ऐसा करने से मना कर दिया था।
महाराजा रणजीत सिंह उन पर इतने मोहित हो गए थे कि वो अपना सब कुछ देने के लिए तैयार थे और गुल बहार एक मुस्लिम परिवार से थीं, इसलिए उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह से कहा कि वो प्रेमिका बन कर नहीं रह सकतीं। उस समय महाराजा की आयु 50 साल से ज्यादा थी और ये वो दौर था, जब अंग्रेजों ने उपमहाद्वीप में पैर जमाने शुरू कर दिए थे। गुल बहार ने प्रस्ताव रखा कि अगर महाराजा चाहें तो वो उनसे शादी करने को तैयार हैं। जिसे महाराज रणजीत सिंह ने बिना सोचे समझे स्वीकार किया था। पंजाब के महाराजा ने औपचारिक तौर पर गुल बहार के परिवार से उनका हाथ मांगा।
अकाल तख्त ने रंजीत को कोड़ों की सजा सुनाई
गुल बहार ने अपने विवाह प्रस्ताव के साथ ये शर्त रखी थी कि रणजीत सिंह उनके घर वालों से रिश्ता मांगने के लिए खुद पैदल चल कर लाहौर से अमृतसर आएंगे। हालांकि, पंजाब के महाराजा के लिए भी सिख धर्म के बाहर एक मुस्लिम लड़की से शादी करना इतना आसान नहीं था। सिख धर्म के धार्मिक लोगों ने रणजीत सिंह के इस फैसले पर नाराजगी जताई। महाराजा को अमृतसर के सिख तीर्थस्थल अकाल तख्त में बुलाया गया और अकाल तख्त को सिख धर्म में धरती पर खालसा का सबसे ऊंचा स्थान माना जाता है। अकाल तख्त ने रणजीत सिंह को गुल बहार से शादी करने की सजा के रूप में कोड़े मारने की सजा दी थी। रणजीत सिंह ने अपनी इस रानी के लिए इस सजा को भी स्वीकार कर लिया था।
क्या रणजीत सिंह को कोड़े मारे गए थे?
महाराजा रणजीत सिंह की उम्र उस समय 50 साल से अधिक थी लेकिन समस्या ये थी कि वो महाराजा थे जिनके साम्राज्य की सीमा पंजाब से भी बाहर तक फैली हुई थी। ऐसे प्रभावशाली व्यक्ति को कौन कोड़े मार सकता था? दूसरी ओर, अकाल तख्त का आदेश भी था, जिसे रणजीत सिंह के लिए भी अस्वीकार करना मुमकिन नहीं था। इसका समाधान ये निकला गया कि एक रेशम का कोड़ा तैयार किया गया और इसके साथ रणजीत सिंह को कोड़े मारे गए और सजा पूरी की गई थी। इस तरह से महाराजा ने कोड़े भी खा लिए और और गुल बहार को भी नहीं छोड़ा।
अमृतसर के राम बाग में एक बंगला था, जहां ये शादी समारोह होना था। इस बंगले को कई दिनों पहले बंद कर दिया गया था और कई दिनों तक इसकी सजावट का काम किया गया था। इसे खाली करा दिया गया था और इसके बाद जो पहला इंसान इसमें दाखिल हुआ वो गुल बहार थी। शादी समारोह से एक रात पहले, एक संगीत कार्यक्रम आयोजित किया गया था मुजरे हुए। उस कार्यक्रम में गाने वालों को पुरस्कार के रूप में 7 हजार रुपये दिए गए। उस समय ये बहुत बड़ी धनराशि थी।
बनवाया गया था खास पुल
शादी समारोह बड़ी धूमधाम से हुआ था। जिसके बाद शाही जोड़ा अमृतसर से लाहौर के लिए रवाना हुआ। लेकिन लाहौर में प्रवेश करने से पहले रावी नदी का एक छोटा सा नाला उनके रास्ते में रुकावट बन गया था। अगर कोई और होता तो वो उसे पैदल पार कर सकता था लेकिन गुल बहार अब लाहौर की रानी थी। ये कैसे हो सकता था कि रानी पालकी से उतर कर पैदल नाला पार करती? गुल बहार ने ऐसा करने से मना कर दिया था। जिसके बाद इस नाले के ऊपर एक पुल बनाया गया था, जिस पर चल कर रानी ने नाले को पार किया था। बाद में इस पुल का नाम ‘पुल कंजरी’ के नाम से मशहूर हुआ। इसका हिस्सा आज भी मौजूद है और ये पुल 1971 में पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध के दौरान काफी चर्चा में था।
शादी के 8 साल बाद हो गई थी उनकी मृत्यु
गुल बेगम से शादी के 8 साल बाद रंजीत सिंह की मृत्यु हो गई थी। इसके कुछ ही समय बाद, अंग्रेजों ने पंजाब पर पूरा नियंत्रण कर लिया था। रंजीत सिंह की अंतिम पत्नी जिन्दां को देश से निकाल दिया गया क्योंकि उनके बेटे दिलीप सिंह को ही रंजीत का उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया था। गुल बहार बेगम की खुद की कोई संतान नहीं थी। इसलिए उनसे ब्रिटिश सरकार को कोई खतरा नहीं था। महाराजा की पत्नी होने के नाते, गुल बेगम के लिए मासिक वजीफा निर्धारित कर दिया गया था, जो प्रति माह लगभग बारह सौ रुपये था।
गुल बेगम ने एक मुस्लिम लड़के, सरदार खान को गोद ले रखा था। साल 1851 में गुल बेगम ने अपने लिए लाहौर के प्राचीन मियानी साहब कब्रिस्तान के बराबर में एक बाग का निर्माण कराया था और इस बाग में उन्होंने अपना मकबरा भी बनवाया था। इसकी दीवारों पर की गई नक्काशी तो मिट चुकी है, लेकिन मकबरे के अंदर की छत और दीवारों पर बनी खूबसूरत नक्काशी आज भी ऐसे ही मौजूद है, जैसा कि उन्हें कल ही बनाया हों। इस बगीचे के निर्माण के लगभग दस साल बाद गुल बेगम की भी मृत्यु हो गई और उन्हें इसी मकबरे में दफनाया गया था।