सऊदी अरब ने तेल की कीमतों को लेकर एक तरह की जंग छेड़ दी है। वो तेल का उत्पादन बढ़ाने में लगा हुआ है और कीमत कम करने में लगा है। तेल कीमतों को ऑयल प्रोड्यूसिंग एक्सपोर्टिंग कंट्री यानी की ओपेक का समूह तय करता है। इसकी अगुवाई सऊदी अरब करता है। रूस भी इसका सदस्य है और रूस ने सऊदी अरब द्वारा कीमतों को कम करने पर ओपेक में कड़ा विरोध दर्ज किया, लेकिन सऊदी अरब ने अपने कदम पीछे नहीं किए। सऊदी अरब ने कीमतों को बहुत ज्यादा कम कर दिया है। सऊदी अरब की तरफ से कच्चे तेल की कीमतों में पिछले 30 सालों में सबसे कम गिरावट है। सऊदी अरब में 6 मार्च से पहले प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत तकरीबन 52 डॉलर थी। 6 मार्च को सऊदी अरब ने तेल की कीमत कम करके 31.49 डॉलर कर दिया।
अगर बाजार में कोई भी कीमतों के साथ ऐसी छेड़छाड़ करता है तो इसका सीधा मतलब होता है कि बाजार के कायदे कानूनों के साथ छेड़छाड़ कर रहा है। और पूरे बाजार को अपनी तरफ मोड़ रहा है और सारे ग्राहकों को अपनी तरफ लाने की कोशिश कर रहा है। जैसे अमेरिका की तरफ से कच्चे तेल की कीमत इस समय 50 डॉलर प्रति बैरल है। रूस तकरीबन 40-50 रुपये प्रति बैरल के हिसाब से बेच रहा है। इससे साफ है कि ग्राहक सऊदी अरब की तरफ ही बढ़ेंगे। सऊदी की तरफ से अमेरिका और रूस के तेल बाजार पर सीधा हमला किया जा रहा है। इससे रूस और अमेरिका को भले ही थोड़े समय के लिए नुकसान हो लेकिन सऊदी इस रणनीति को बहुत लंबे समय तक नहीं अपना पाएगा।
सऊदी को क्या फायदा?
लेकिन इससे सऊदी अरब को क्या फायदा पहुंचेगा? इसका जवाब देना तो बहुत मुश्किल है। पीपल्स डिस्पैच के अब्दुल रहमान कहते हैं कि सऊदी अरब के कुल सरकारी खर्च का तकरीबन 70 फीसदी सोर्स तेल की बिक्री ही है। आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक अगर तेल 83.6 डॉलर से कम में बेचा जाएगा तो सऊदी अरब को नुकसान होगा। लेकिन फिर भी सऊदी अरब कीमतों को कम करते जा रहा है। खबर आ रही है कि सऊदी अरब में कई सारे सेक्टरों का बजट कम कर दिया गया है। ऐसे में ये सोचना जरूरी होगा कि आने वाले 100-200 सालों में जब तेल खत्म हो जाएगा तब क्या सऊदी इसी तरह से चल पाएगा।
अब सवाल ये भी उठता है कि क्या कच्चे तेल में कम हुई कीमतों का फायदा भारत सरकार अपनी जनता को देगी? नहीं, बिल्कुल नहीं देगी। ऐसा इसलिए क्योंकि लगातार सऊदी अरब द्वारा तेल की कीमत कम किए जाने के बाद भी सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी है। ये बढ़ोतरी 14 मार्च से लागू हो गई है। यानी कि कच्चे तेल की कीमतों का फायदा फिलहाल आम लोगों को होने नहीं वाला है। सरकार ऐसा क्यों कर रही है, इसका जवाब ढूढ़ने के लिए ज्यादा गणित लगाने की जरुरत नहीं है।
तेल से होंगे काम
आसान भाषा में कहें तो केंद्र सरकार ने मौजूदा वित्तीय हालातों में इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य विकास कार्यों के लिए जरूरी फंड जुटाने के मकसद से पेट्रोल-डीजल पर ये एक्स्ट्रा एक्साइज ड्यूटी लगाई है। लेकिन सही शब्द में कहा जाए तो सरकार के कदमों ने अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है। इस बर्बाद अर्थव्यवस्था में सरकार को जनता से ज्यादा खुद के खर्चे भी पूरे करने है। इसकी भरपाई सरकार कच्चे तेल की कीमतों में हुई कमी से करेगी।
पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल कहता है कि साल 2014 में भारत प्रति लीटर कच्चे तेल की खरीद पर तकरीबन 47.12 रुपये खर्च करता था। कच्चे तेल की ये कीमत मार्च 2020 में घटकर तकरीबन 32.93 पैसे हो गई है। लेकिन आम जनता तेल तब भी औसतन 71 रुपये प्रति लीटर में खरीदती है। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के तहत राजधानी दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल पर 19.98 रुपये की एक्साइज ड्यूटी लग रही थी। लेकिन अब इसके बढ़ने के बाद से ये 22.98 रुपये हो गई है। एक्साइज ड्यूटी में इस बढ़ोतरी से सरकार को करीब 39 हजार करोड़ रुपये की कमाई की उम्मीद है।
अरब से लेकर भारत तक की गुपचुप तेल नीति
अरब से लेकर भारत सरकार की तेल की नीतियां ऐसी हैं, जो गुपचुप तरीके से सरकारों के फायदे के लिए ही काम करती है। जनता को तो पता भी नहीं चलता कि उनके पैसे का कैसा इस्तेमाल हो रहा है? क्या सरकारें कभी अपने से पहले आम जनता के बारे में सोचती भी है कि नहीं। आप कह सकते हैं कि सरकार का ये कदम उचित है कि वो पेट्रोल, डीजल से होने वाली कमाई से अपना राजकोषीय घाटा भरे। लेकिन तब आपको सरकार से ये भी पूछना चाहिए कि आम आदमी गरीब से गरीब होते जा रहा हैं, सरकार के इर्द गिर्द रहने वाले आदमी अमीर से अमीर, ऐसा कैसे? क्या सचमुच राजकोष में जमा पैसा आम आदमी पर खर्च किया जाता है? या इसका इस्तेमाल कहीं और हो रहा है।