चांद, जिसे कि धरती से कभी केवल देखा जा सकता था, 21 जुलाई, 1969 को उसी चांद पर एक इंसान ने कदम रख दिया। इनका नाम था नील आर्मस्ट्रांग। ये एक खगोलयात्री थे जो कि इससे पहले पायलट रहे थे। नील आर्मस्ट्रांग के जीवन से जुड़ी ऐसी बहुत सी रोचक बातें हैं, जिनसे आप शायद भिज्ञ नहीं होंगे। ऐसे में उनकी उपलब्धि के इस वर्ष 50 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में हम आपको नील आर्म्सट्रांग से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बता रहे हैं जो आपको हैरानी में जरूर डाल देंगी।
अमेरिका के ओहियो में 5 अगस्त 1930 को जन्मे नील आर्मस्ट्रांग के मन में उड़ान के प्रति लगाव और पायलट बनने की इच्छा तभी जागृत हो गई थी, जब बचपन में वे अपने पिता के साथ एक बार एयर शो देखने के लिए गए थे। यहां आसमान में करतब दिखाते विमानों को देखकर उनके मन ने यह निश्चय कर लिया था कि वे हर हाल में पायलट अब बनकर ही रहेंगे। यह उनके जुनून का ही नतीजा था कि महज 15 वर्ष की उम्र में ही उन्हें पायलट का लाइसेंस मिल गया था और इसके बाद इन्होंने एयर स्पेस इंजीनियरिंग में पहले स्नातक और फिर मास्टर की डिग्री हासिल कर ली। सेना की ओर से नील आर्मस्ट्रांग को उसी वक्त फाइटर पायलट बनने का आमंत्रण प्राप्त हो गया था, जब वे कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। यह उनके लिए बेहद सुनहरा अवसर था। ऐसे में उन्होंने इस मौके को तुरंत लपक लिया और कोरिया युद्ध में भाग लेने के लिए अमेरिका की ओर से रवाना भी हो गए।
कोरिया युद्ध में दिखाई कुशलता
कोरिया युद्ध के दौरान भी उन्होंने बड़ी कुशलता दिखाई और और जब एक बार दुश्मनों ने उनके हवाई जहाज पर निशाना लगाया तो वे अपने विमान को इससे बचाने में सफल हो गए। इस तरह से उन्होंने विमान के साथ अपनी जान भी बचा ली। इस दौरान उन्होंने बखूबी फाइटर प्लेन उड़ाए और युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना की भरपूर मदद की। इनकी पढ़ाई पूरी हो गई और कोरिया युद्ध भी खत्म हो गया तो नील आर्मस्ट्रांग एक टेस्ट पायलट बन गए। अमेरिका जो भी नए हवाई जहाज बनाता था, उन्हें उड़ा कर ये टेस्ट करते थे कि ये सही तरह से बनाए गए हैं या नहीं। यह जोखिम भरा जरूर था, मगर आर्मस्ट्रांग ने सहर्ष स्वीकार किया। इस तरह से उन्होंने करीब 200 प्रकार के हवाई जहाज उड़ा लिए।
आर्मस्ट्रांग को ही क्यों मिला मौका?
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA किसी इंसान को अंतरिक्ष में भेजने को लेकर 1960 के बाद काम कर रहा था। ऐसे में उसे आवश्यकता थी किसी अनुभवी पायलट की। नासा ने जिन पायलटों का चुनाव अंतरिक्ष मिशन में भेजे जाने के लिए किया, उनमें से एक नील आर्मस्ट्रांग भी थे। चांद पर जाने से करीब 7 वर्ष पहले 1962 में उनका चुनाव हो गया था। पहली बार तो 16 मार्च, 1966 को ही नील आर्मस्ट्रांग Mission Gemini 8 में शामिल होकर अंतरिक्ष चले गए थे, जिस दौरान उनके साथ David Scott भी मौजूद थे। मार्च, 1969 में नासा की एक बैठक हुई, जिसमें नील आर्मस्ट्रांग की प्रतिभा एवं उनके अनुभव के साथ उनकी विनम्रता को देखते हुए इस बात का निर्णय लिया गया कि चंद्रमा पर सबसे पहले वही उतरेंगे। यही नहीं, Apollo 11 spacecraft के वे कमांडर भी थे। ऐसे में उनका ही पहला अधिकार चांद पर उतरने का बन रहा था। इस तरह से 16 जुलाई, 1969 को अपोलो 11 अंतरिक्ष यान ने अपनी उड़ान भर दी, जिसमें Buzz Aldrin और Michael Collins के साथ नील आर्मस्ट्रांग रवाना हुए थे। पांच दिनों के बाद नील आर्मस्ट्रांग 21 जुलाई, 1969 को चांद पर उतरकर चंद्रमा पर कदम रखने वाले दुनिया के पहले इंसान बन गए। उस वक्त उन्होंने सबसे पहले यही कहा था कि मानव के लिए यह भले ही एक छोटा सा कदम है, लेकिन मानव जाति के लिए यह एक लंबी छलांग है।
आगे की जिंदगी
चांद पर Buzz Aldrin के साथ नील आर्मस्ट्रांग ने 21 घंटे बिताए थे। इस तरह से नील आर्मस्ट्रांग के बाद चांद पर उतरने वाले दूसरे व्यक्ति Aldrin ही थे। माइकल कॉलिंस चांद पर नहीं उतरे थे, क्योंकि वे यान में बैठकर चांद की परिक्रमा कर रहे थे। जिस चांद पर ये दोनों उतरे थे, उसका नाम Eagle था। प्रशांत महासागर में लैंडिंग करते हुए ये तीनों 24 जुलाई को धरती पर लौट आए थे। भले ही अपोलो 11 मिशन खत्म हो गया, लेकिन इसके बाद भी आर्मस्ट्रांग नासा में अलग-अलग पदों पर सेवा देते रहे। यूनिवर्सिटी में वे एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर भी रहे। उन्हें जब इस बात की जानकारी मिली कि उनके ऑटोग्राफ को इंटरनेट पर बेचा जा रहा है तो उन्होंने ऑटोग्राफ देना बंद कर दिया था। दिल की बीमारी की वजह से 25 अगस्त, 2012 को 82 वर्ष की उम्र में चांद पर पहला कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग इस संसार से विदा हो गए। आज भी उनकी उपलब्धियां लोगों को प्रेरित करती हैं। आसमान में चांद को देखकर उनकी याद आ ही जाती है।