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आखिर क्यों खिलजी ने जला दी पूरी नालंदा विश्वविद्यालय? जानिए पूरा सच

भारत में नालंदा विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का महत्वपूर्ण और विश्व का विख्यात केन्द्र था। नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालय में से एक था। इस विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के साशनकाल में सम्राट कुमारगुप्त ने की थी और उसके बाद महेन्द्रादित्य के खिताब को जीता था।

देश-विदेश से छात्र आते थे नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने

नालंदा विश्वविद्यालय के उच्चारण से ही आप भारतीय ज्ञान के प्राचीन समय में पहुंच जाएंगे। उच्च शिक्षा का यह प्राचीन केंद्र बिहार स्थित नालंदा जिले में था। और यह केंद्र तक्षशिला के बाद भारत का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय था। इस विश्वविद्यालय 14 हेक्टेयर में फैला था। पांचवीं शताब्दी से लेकर 1193 के तुर्कों के हमला तक यह एक प्रमुख शिक्षा केंद्र था। यहां तिब्बत, चीन, ग्रीस और पर्सिया से छात्र शिक्षा के लिए आते थे।

यह विश्व का यह प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय था और प्राचीन समय में इसमें करीबन 10,000 विद्यार्थी अभ्यास करते थे और उनको विद्या देने के लिए यहाँ लगभग 2,000 अध्यापक थे। यहाँ शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यार्थी दूसरे देशो से भी आते थे। नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक बड़ी सी दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें प्रवेश के लिए केवल एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर छोटे-छोटे मठों की कतार खड़ी थीऔर उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे।उन मंदिरो में बुद्ध भगवान की सुंदर मूर्तियां स्थापित थीं, जोकि अब नष्ट हो चुकी हैं।

 

बख्तियार की जलन ने पुरे नालंदा को आग में झोंक दिया

एक समय था जब बख्तियार खिलजी बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया था । हकीमों ने इसका काफी उपचार किया पर कोई फायदा हुआ नहीं । तब उसे नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से उपचार कराने को कहा गया था। उसने आचार्य राहुल को बुलवा लिया लेकिन इलाज से पहले उसने शर्त लगा दी की वह किसी हिंदुस्तानी दवाई का सेवन नहीं करेगा। फिर उसने कहा कि अगर वो ठीक नहीं हुआ तो आचार्य राहुल की हत्या करवा देगा। हालाँकि वो ठीक भी हो गया पर उसके बाद उसे जलन होने लगी कि एक हिंदुस्तानी वैद्य उसका इलाज करने में सफल हो गया। तब खिलजी ने सोचा कि क्यों न इस ज्ञान की पूरी जड़ को ही खत्म कर दिया जाए

उसके बाद हुआ ये कि जलन के मारे खिलजी ने पूरी नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी। ऐसा कहा जाता है कि विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में इतनी किताबें थीं कि वह लगातार तीन महीने तक जलती रही। हालाँकि इसके बाद भी खिलजी का मन तो शांत नहीं हुआ। उसने विश्वविद्यालय के हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं की भी मरवा दिया। हालाँकि उसने बाद में पूरे नालंदा को भी जलाने का आदेश दे दिया था। और इस तरह उस सनकी बख्तियार ने हिंदुस्तानी वैद्य आचार्य राहुल के अहसान का बदला चुकाया था। और इस तरह हुआ नालंदा विश्वविद्यालय का अंत।