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अपने दोगले रवैये से बाहर नहीं निकल सकता मीडिया और योगी सरकार

हाथरस में एक 20 साल की लड़की का रेप होता है, कई दिनों तक कोई हो हल्ला नहीं होता, लेकिन बेटी के मर जाने के बाद खबर दिखाई जाती है और सोशल मीडिया पर बातें होना शुरु होती है। तब लोगों के मुंह से छी-छी निकलना शुरु होता है। बच्ची की जीभ कटी होती है, रीढ़ की हड्डी तोड़ दी जाती है जब ये बात सामने आती है तो लोगों में आक्रोश आता है। लेकिन लग रहा था कि मामला 1-2 दिन तक रहेगा फिर बैक टू नॉर्मल हो जाएगा। लेकिन अचानक से रात को 2 बजे के करीब लड़की के शरीर को जला दिया जाता है, परिवार को लड़की का शव नहीं दिया जाता है।

इसके बाद शुरु होता है असली हल्ला। सवाल खड़े होते हैं कि आखिर क्यों बच्ची का शव पुलिस ने जला दिया, परिवार को शरीर क्यों नहीं दिया गया। कई वीडियो वायरल होते हैं जिसमें लड़की की भाभी डीएम की गाड़ी के पीछे भागती है, परिवार वाले गाड़ी के सामने लेट जाते हैं, गुहार लगाते हैं कि हमारी बेटी की शक्ल दिखा दो, लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता है।

क्यों योगी पर सवाल नहीं?

इस बात के बाद हमारा सत्याग्रही मीडिया हाथरस पहुंच जाता है। पुलिस ने गांव सील कर दिया ना कोई अंदर जा सकता था, ना कोई बाहर, 2 दिनों तक पुलिस की ये गुंडागर्दी चली। मीडिया ने हल्ला किया की हमें जाने नहीं दे रहे। डीएम परिवार वालों को धमकाता है, एसडीएम जवाब नहीं देता एसपी कहता है रेप नहीं हुआ। एसपी को हालांकि अब सस्पेंड कर दिया गया है।

ऐसे में मीडिया चैनल धरना दे देते हैं। कई महिला रिपोर्टर पुलिस वालों से सवाल करती है, प्रशासन के तमाम आला अधिकारियों से सवाल करती है कि क्यों नहीं जाने दिया जा रहा। लेकिन किसी मीडिया चैनल ने सरकार से सवाल नहीं किया? किसी ने ये नहीं बोला कि क्यों योगी के डीएम ने परिवार को धमकाया, क्यों योगी की पुलिस निकम्मों की तरह पेश आई? क्यों योगी की पुलिस ने गांव बंद करके रखा?

मीडिया अधिकारियों पर तो चिल्लाती रही, लेकिन एक बात समझ नहीं आई कि क्या डीएम या एसपी में इतनी हिम्मत है कि वो बिना मुख्यमंत्री या सचिव की इजाजत के कैसे ये घेरा बना कर बैठे रहे, कैसे परिवार को बिना दिखाए शव जला दिया गया। ये क्या बिना सरकार को बताए हुआ? और अगर हुआ तो इतने वक्त के बाद भी कैसे डीएम, एसडीएम, गृह सचिव, एडीजी अपनी कुर्सियों पर बने हुए हैं? क्यों डीएम से मुख्यमंत्री ने जवाब नहीं मांगा या मीडिया के सामने आने को कहा?

वाह-वाह करने को हो जाएं तैयार

इससे तो यही लगता है कि ये सब कुछ लखनऊ वाली सरकार बहादुर के कहने पर हुआ है। मीडिया ने योगी आदित्यनाथ से एक सवाल नहीं किया, कुछ दिन में हो सकता है कोई गाड़ी पलट जाए और पुलिस खुद ही जज बन कर गोली वरा मार दे और केस रफा दफा कर दिया जाए, जिससे आप सब वाह वाह कर दे कि क्या पुलिस है क्या मुख्यमंत्री है।

पीड़ित परिवार का लगातार कहना है कि पुलिस, एसआईटी अपना काम सही से नहीं कर रही है। परिवार ने सीबीआई के लिए भी मना किया, लेकिन फिर भी सीबीआई को जांच दी गई। मीडिया का रवैया कुछ इस तरह था कि पुलिस तो निकम्मी है लेकिन सीबीआई बहुत अच्छी है। पुलिस केस घुमा रही है तो इस पर योगी आदित्यनाथ पर सवाल नहीं है, लेकिन महाराष्ट्र में पुलिस ने केस घुमाया तो इसके जिम्मेदार उद्धव ठाकरे थे।

शिवसेना सरकार पर ले देकर पूरी मीडिया चढ़ गई, जबकि योगी आदित्यनाथ की तारीफों के कसीदे सिर्फ इसलिए पढ़े जा रहे हैं क्योंकि उन्होंने सीबीआई दिला दी। जबकि परिवार ने सीबीआई को मना कर दिया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में जांच मांगी थी।

नेता करें तो हुड़दंग मीडिया करे तो सत्याग्रह

मीडिया ने नेताओं के हाथरस जाने पर सवाल खड़े किए, एक चैनल तो कह रहा था कि नेता सुरक्षा घेरा तोड़ रहे हैं अपनी सियासत चमकाने के लिए, तो मीडिया के जब बहादुर रिपोर्टर बिना पुलिस की इजाजत के पीड़िता के घर जा रहे थे तो वो सत्याग्रह था। ये टीआरपी की जंग में नहीं था और नेताओं ने सियासत की। मीडिया का ये दोगलापन ही है जो उस पर सवाल खड़े कर रहा है।

जब टीवी वाले पुलिस को भगा रहे थे, परेशान कर रहे थे तो वो सत्याग्रही थे, 10-10 रिपोर्टर लेकर धरने पर बैठे तो वो गांधीगिरी और जब नेताओं को रोका गया, धक्के दे कर गिराया गया, हर चीज मानने को तैयार नेताओं को धक्के दिए, महिला नेताओं पर पुरुष पुलिस वालों ने हाथ डाले, कपड़े फाड़े, डंडे मारे तो वो हुड़दंगी थे और मीडिया सत्याग्रही…

नोट – इस पूरे लेख में रिपब्लिक टीवी को शामिल नहीं किया, उस चैनल के संपादक शायद अपनी इंसानियत खो चुके हैं और नैतिकता बेच चुके हैं। बिकने के तथ्य नहीं है सिर्फ अनुमान है। हमारे भी शायद सूत्र है जो ये कह रहे होंगे।