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गुलाम नबी आजाद ने हामिद अंसारी को आईना जरूर दिखा दिया

गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से रिटायरमेंट हो गई है। इस मौके पर उन्होंने एक बहुत ही भावुक भाषण दिया है। इस भाषण के बाद प्रधानमंत्री ने भी एक भावुक भाषण देकर गुलाम नबी आजाद का शुक्रिया अदा किया। दोनों नेता एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी है, लेकिन सियासत से परे हटकर ये भावुक दिन लंबे वक्त भारत की सियासत में याद रखा जाएगा। जहां एक तरफ आजाद ने एक ऐसी मिसाल पेश की, जिसे शायद ही कोई लंबे वक्त तक भूल पाएगा तो वहीं इसके बाद से देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी शायद अब सहज महसूस न कर रहे हो। हो सकता है अब उन्हें लग रहा हो कि जो बातें उन्होंने हाल के दिनों में बोली हैं वो गलत हैं।

“फक्र है कि मैं हिंदुस्तानी मुसलमान हूं”

राज्यसभा में अपने विदाई भाषण में गुलाम नबी आजाद ने कहा कि मुझे इस बात का फक्र है कि मैं हिंदुस्तानी मुसलमान हूं। मैं उन खुशकिस्मत लोगों में से हूं जो पाकिस्तान कभी नहीं गए। जब मैं देखता हूं कि पाकिस्तान में किस तरह के हालात हैं तो मुझे हिंदुस्तानी होने पर फक्र होता है कि हम हिंदुस्तानी मुसलमान हैं। इन शब्दों के सुनने के बाद हामिद अंसारी को शायद अहसास हो रहा होगा कि वो गलत है।

वो बार-बार ये कहते हैं कि भारत में मुसलमानों के साथ अन्याय हो रहा है। मुसलमान डर के साथ जी रहा है। लेकिन शायद वो ये साबित नहीं कर सकते हैं। आजाद कहते हैं कि आज विश्व में अगर किसी मुसलमान को गर्व होना चाहिए तो वो हिंदुस्तानी मुसलमान को होना चाहिए। गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन में अपने लिए की गई टिप्पणियों पर कहा कि प्रधानमंत्री ने जिस तरह भावुक होकर मेरे बारे में कुछ शब्द कहे, मैं सोच में पड़ गया कि मैं कहूं तो क्या कहूं।

सरकार की निंदा करिये, लेकिन मुसलमान को मत भड़काइए

हामिद अंसारी भारतीय विदेश सेवा की मालदार और मौज-मस्ती वाली नौकरी कर चुके हैं, 2 बार देश के उपराष्ट्रपति रह चुके हैं, लेकिन तब उन्हें एक बार सरकार के खिलाफ बोलना सही नहीं लगा। लेकिन फिर वो एकदम से असुरक्षित हो गए। सरकार की निंदा करना गलत नहीं है, लेकिन सरकार की निंदा करने की आढ़ में एक पक्ष को भड़काना बिलकुल गलत और उपराष्ट्रपति जैसे पद पर रहने वाले व्यक्ति को शोभा नहीं देता है।

आजाद ने अपने भाषण में कहा कि वो ऐसे कॉलेज में पढ़े, जहां ज्यादातर छात्र 14 अगस्त पाकिस्तान का स्वाधीनता दिवस ही मनाते थे। मैं जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े कॉलेज एसपी कॉलेज में पढ़ता था और वहां पर 14 अगस्त भी मनाया जाता था और 15 अगस्त भी। वहां ज्यादातर वो लोग थे जो 14 अगस्त मनाते थे और जो लोग 15 अगस्त मनाते थे, उनमें मैं और मेरे कुछ दोस्त थे।

हम प्रिंसिपल और स्टाफ के साथ रहते थे। इसके बाद हम दस दिन तक स्कूल नहीं जाते थे क्योंकि जाने पर पाकिस्तान समर्थकों द्वारा पिटाई होती थी। मैं उस स्थिति से निकलकर आया हूं। मुझे खुशी है कि कई पार्टियों के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर आगे बढ़ा है। जाहिर है कि कश्मीर घाटी में भी वो तिरंगा लहराते रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि गुलाम नबी आजाद बनने के लिए दशकों की मेहनत तो लगती ही है।

खुद को नहीं रोक पाए नरेंद्र मोदी

9 फरवरी 2021 भारतीय संसद के लिए एक यादगार दिन बन गया है। गुलाम नबी आजाद की विदाई के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो भाषण दिया उसने भारतीय राजनीति में सत्ता और विपक्ष के बीच के रिश्तों को लेकर एक संकेत भी है और संदेश भी हैं। जानने वाले जानते हैं कि आजाद किस मिट्टी के बने हैं।

वो उछल कूद की राजनीति कभी नहीं करते हैं और न आगे कभी करेंगे। प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा है वो गुलाम नबी आजाद की बेहतरीन संवाद क्षमता, व्यवहार, शालीनता और मर्यादा की राजनीति को लेकर है। वो भारत की संसद पर एक अनूठी छाप छोड़ने वाले नेताओं में से हैं और राष्ट्रीय राजनीति में उनकी अलग पहचान है।

ऐसा रहा है गुलाम नबी आजाद का राजनीतिक सफर

गुलाम नबी आजाद किसी राजनीतिक खानदान से नहीं आते हैं। आजाद की राजनीति जमीनी स्तर पर 1973 में जम्मू कश्मीर में एक ब्लाक से आरंभ हुई और अपनी प्रतिभा के बल पर ही वो 1975 में जम्मू कश्मीर युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने। साल 1980 में पहली बार लोक सभा पहुंचे और बाद में 5 बार राज्यसभा सांसद रहे हैं। केंद्र में तमाम विभागों का मंत्रालय संभाला है। नवंबर 2005 से जुलाई 2008 के दौरान जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया।