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दरअसल कोरोना काल में विपक्ष की चिंता भी राजनीति से भरी है

कहते हैं न कि दूसरों को सीख देना तो काफी आसान होता है लेकिन उसका खुद पर अमल करना काफी मुश्किल। देश में कोरोना काल में विपक्ष की चिंता का हाल कुछ ऐसा ही है। कांग्रेस, वाम दल, सपा, बसपा, टीएमसी समेत सभी अन्य दल सियासत की वजह से मोदी सरकार की गलत रणनीतियों पर तो सवाल उठा रहे हैं, लेकिन अपने राज्यों में कुछ भी करने में असफल हो रहे हैं और उसके लिए भी जिम्मेदार मोदी सरकार को ही ठहरा रहे हैं।

क्या ये ठीक वैसा नहीं है जब मोदी भक्त सरकार की नाकामी के पीछे जिम्मेदार नेहरू को बता देते हैं?

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अभी भी कांग्रेस की विचारधारा से मेल खाने वाले दलों को एक कर रही हैं। और शायद वो 2024 तक यही करती रह जाएंगी। हालांकि अब वो इस उद्देश्य में भी कमजोर हो रही है क्योंकि सपा-बसपा ने साथ देने से मना कर दिया है तो वहीं कोरोना काल में दिल्ली वाले भी साथ नहीं दे रहे हैं। जी हां इस वक्त अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी भी कांग्रेस के साथ नहीं बल्कि केंद्र सरकार के साथ खड़ी नजर आ रही है।

कांग्रेस के साथ सिर्फ यूपीए के दल

कांग्रेस ने एक बैठक की जिसमें यूपीए के ज्यादातर दल ही शामिल रहें और उसके बाद साझा बयान में कहा गया कि देश के 60 फीसदी लोगों का प्रतिनिधित्व विपक्षी दल करते हैं, इसलिए केंद्र सरकार को उनकी बात सुननी चाहिए। अगर बात करें कांग्रेस की तो पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की अकेली सरकार है वहीं महाराष्ट्र और झारखंड में सरकार की अहम सहयोगी है। जब इस तरह की बैठक होती है और बाद में बयानबाजी होती है तो क्या उसके पीछे त्रासदी से बाहर निकलने की नीयत होती है या फिर राजनीति करना। कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक दिन कहते हैं कि लॉकडाउन में नर्मी होनी चाहिए, ये सिर्फ पॉज बटन है और अगले पल कहते हैं कि लॉकडाउन खोलना गलत है। तो आखिर आप चाहते क्या हैं?

क्या कांग्रेस मुख्यमंत्रियों ने नहीं सुनी राहुल गांधी की बात

कांग्रेस हमेशा से कहती आ रही है कि राहुल गांधी ने 12 फरवरी को ही ट्वीट कर पीएम से कोरोना पर एक्शन लेने के लिए कहा था। तो फिर पंजाब, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र में संवेदनहीनता क्यों हुई? सबसे पहला हॉटस्पॉट तो राजस्थान में बना था और पूरे देश में सबसे ज्यादा मामले अगर किसी राज्य से आ रहे हैं तो वो महाराष्ट्र से आ रहे हैं। इन दोनों राज्यों में आपकी सरकार है, तो आपने अपने राज्यों में क्यों मजबूती नहीं दिखाई। अगर आपको कोरोना से मुक्ति और जनहित की चिंता थी, तो सभी सुझाव और मांग केंद्र की मोदी सरकार से ही क्यों किये गये? अपनी सरकारों से क्यों सवाल नहीं किए गए?

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कोरोना काल में विपक्ष की बातों से लगता है कि भारत में एकात्मक शासन व्यवस्था है और देश में न कोई राज्य है और न ही राज्य सरकारें हैं। आज देश जब एक भयावह त्रासदी से गुजर रहा है, वैसे में देश के 60 फीसद जनता के प्रतिनिधित्व करने का दावा वाले दलों के बयान से राज्यों की जवाबदेही के लिए एक शब्द भी नहीं निकलना बेहद आश्चर्यजनक है। कोविड के खिलाफ लड़ाई में राज्यों की भूमिका इतनी भी नहीं कि उसकी इस कदर अनदेखी की जाए।

श्रमिकों के पैसे तो कांग्रेस देने वाली थी

कुछ दिनों पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि श्रमिकों की वापसी का किराया कांग्रेस देगी। इस पर राजनीति भी खूब हुई लेकिन कुछ दिन बाद ये मांग की गयी है कि केंद्र श्रमिकों और छात्रों की मुफ्त वापसी की व्यवस्था करे। सवाल है कि क्या कांग्रेस ने श्रमिकों का किराया देने का इरादा बदल दिया है? दरअसल प्रवासी मजदूरों के अपने गांव लौटने को लेकर राजनीति खूब हो रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार के लिए ये एक बड़ी चुनौती है, लेकिन इसके बावजूद इन सरकारों द्वारा मजदूरों को वापस लाने के लिए बस, रेल और अन्य माध्यमों का उपयोग किया जा रहा है।

बेशक इन तमाम कोशिशों के बाद भी मजदूर परेशान भटक रहे हैं और दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। राजस्थान की गहलोत सरकार ने यूपी की योगी सरकार से 70 बसों का किराया वसूल लिया। ये श्रमिकों की वापसी के हालात से चिंतित दिखने वाली कांग्रेस की कथनी और करनी में इतना फर्क क्यों है? एकतरफ गहलोत सरकार छात्रों को उनके घर भेजने के लिए किराया वसूल रही थी और दूसरी तरफ कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा मुफ्त बसें भेजने का पत्र लिख रही थीं। दरअसल कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जब देश लड़ रहा है तब कांग्रेस और उसके सहयोगी दल आलोचना और अवरोध के नए अवसर खोजने में मशगूल हैं।