साल 2020 में भारत सरकार ने चीन को सबक सिखाने के लिए एक बहुत बड़ा कदम लिया था। भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर सैकड़ों चीनी मोबाइल एप्स को बैन करने का फैसला किया था। जब ये फैसला लिया गया था, तब भारत और चीन का विवाद सबसे चरम पर था। गलवान घाटी में तनाव भी रहा था, और खबरें आई थी कि कई सैनिक शहीद हो गए हैं।
जिसके विरोध में चीनी मोबाइल ऐप्स को बैन करने का कठोर कदम लिया गया था। इसके अलावा बहादुर मोदी सरकार ने वोकल फॉर लोकल, आत्मनिर्भर भारत की बातें भी की थी। चीनी वस्तुओं के बैन की मांग बहुत जोर पर थी, हालांकि कुछ ऐप्स के अलावा कुछ भी बैन नहीं हुआ था। लेकिन माना जा रहा था कि चीन के बाजार पर असर होगा क्योंकि लोगों के मन में बॉयकॉट चीन की भावनाएं आ गई थी।
चीनी मोबाइल फोन की बिक्री बढ़ी
अब जब 2020 का साल खत्म हो गया है तो एक रिपोर्ट सामने आई है, जो कि बहुत ज्यादा हैरान करने वाली है और ऐप्स को बैन कर बहादुर कदम उठाने वाली मोदी सरकार को बिलकुल अच्छी नहीं लगेगी। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में चीनी मोबाइल फोन के बाजार ने अपना विस्तार कर लिया है।
साल 2019 में भारतीय बाजार में जहां पर 71 फीसदी चीनी कंपनियों के स्मार्टफोन बिके थे तो वहीं साल 2020 में ये आंकड़ा बढ़कर 75 फीसदी हो गया है। बात तो हैरान करने वाली ये है कि साल 2014 के बाद से चीनी मोबाइल फोन की बिक्री साल 2020 में सबसे ज्यादा हुई है, वो भी उस दौर में जब पूरे भारत में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की बात जोर पर थी।
During height of the pandemic we brought Production Linked Incentive Scheme(PLI) and top companies applied to produce mobile phones & components worth Rs 10 lakh crore in the coming 5 years.
Moreover, 8-9 factories were shifted from China to India during these challenging times. pic.twitter.com/B8RHkXQyN8— Ravi Shankar Prasad (@rsprasad) January 28, 2021
क्या चीनी स्मार्टफोन की बिक्री में आया ये उछाल आर्थिक राष्ट्रवाद के खतरे को दर्शाता है। चीन के साथ अगर भारत का सीमा विवाद है, या चीन ने भारतीय सीमा का या फिर सीमा सहमतियों का उल्लंघन भी किया है। तो इसका राष्ट्रीय जवाब हो सकता है लेकिन इसके लिए आर्थिक गतिविधियों को औजार बनाना क्या काउंटर प्रोडक्टिव नहीं है? चीनी स्मार्टफोन भारत के बाजार में ज्यादा बिके हैं, तो इसकी वजह साफ है कि बाजार में चीनी कंपनियों ने बाजी मार ली है।
कीमत, गुणवत्ता, फीचर जैसे मामलों में चीनी मोबाइल फोन कई गुणा ज्यादा भारी पड़े हैं। कोविड में लोगों के लिए ऑनलाइन खरीदारी करना मजबूरी थी, ऐसे में चीनी स्मार्टफोन लोगों की जरूरत का हिस्सा बन गए और उसके बाजार में काफी वृद्धि हुई है। अब जरा चीनी मोबाइल एप्स पर बैन के फैसले का विश्लेषण कर लेते हैं।
मोबाइल ऐप्स की भारत में एंट्री ही क्यों हुई?
चीनी मोबाइल ऐप्स अगर वाकई राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक थे तो उनको भारत में एंट्री ही क्यों मिली थी? राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उनका खतरनाक होना उसी समय क्यों समझ में आया जब चीन के साथ भारत का काफी गंभीर सीमा विवाद चल रहा था और बहुत नाजुक परिस्थितियां थी। जो चीनी मोबाइल ऐप भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गए थे, उन पर बैन के अलावा क्या कदम उठाए गए?
क्या चीन को इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ भी परेशानी हुई? इन सारे सवालों का संतोषजनक जवाब मिलना मुश्किल है। क्योंकि जवाब लेने के लिए सवाल करने की जरूरत है और गोदी मीडिया ये करेगा नहीं। लेकिन समझ के आधार पर माना जा सकता है कि ऐप्स को बैन करने के फैसले के पीछे राष्ट्रवाद की भावना रही होगी।
क्यों नही किए गए फोन बैन?
यहां एक सवाल पूछा जाना चाहिए कि जब चीनी ऐप बैन किए गए तो राष्ट्रवाद के नाम पर चीनी स्मार्टफोन को बैन क्यों नहीं किया गया था? इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के लिए चीनी आयात क्यों नहीं रोका गया? दवा कंपनियों के लिए चीनी आयात पर रोक क्यों नहीं लगाई गई? इन मोबाइल ऐप्स पर बैन लगने की वजह से पहले से ही बेराजगारी के दलदल में गिरा हुआ देश और गहराई में चला गया, क्योंकि टिकटॉक की पैरेंट कंपनी बाइटडांस ने भारत में छंटनी कर दी और हजारों की संख्या में लोग बेरोजगार हो गए।