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क्या चीन नेपाल के रूप में दूसरा पाकिस्तान खड़ा कर रहा है?

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने विवादित नक्शा पास करवा लिया है और वो लंबे वक्त से उसमें सफल होते आ रहे हैं। दरअसल केपी ओली ने नेपाल का नक्शा नहीं पास कराया है, बल्कि फिलहाल अपनी कुर्सी बचा ली है और समझने वाली बात ये भी है कि केपी ओली ने भारत के खिलाफ ये कदम वैसे ही उठाया है जैसे पाकिस्तान लेता आया है। ऐसे में भारत के लिए जरूरी हो गया है कि वो हर हाल में नेपाल को पाकिस्तान बनने से रोके। नेपाल के विवादित राजनीतिक नक्शे को वहां की संसद की मंजूरी मिल गयी है। क्या चीन नेपाल के रूप में दूसरा पाकिस्तान खड़ा कर, नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने राजनीतिक नक्शे के नाम पर भारत के खिलाफ कदम उठा कर अपने विरोधियों को चुप करा दिया है और अपनी कुर्सी बचा ली है।

चीन और पाकिस्तान भी सत्ता बचाने के लिए यही करते हैं

असल में पाकिस्तान भी तो ऐसा ही करता है। पाकिस्तानी सरकार हमेशा ही कश्मीर के नाम पर जनता का ध्यान भटकाती रहती है और जो पार्टी सत्ता पर काबिज होती है वो विरोधियों को ऐसे ही किनारे लगाती रही है। जो पार्टी ये सब मैनेज कर लेती है उस पर पाक फौज की कृपा बन जाती है। पाकिस्तान के तख्तापलट को छोड़ दें तो जब भी राजनीतिक नेतृत्व ने फौज को नजरअंदाज करने की कोशिश की, सत्ता से हाथ तो धो ही बैठे, फिर कहीं के नहीं रहे। नवाज शरीफ और इमरान खान होने का फर्क भी फिलहाल इसी हिसाब से देखा जा सकता है। वहीं चीन ने भी तो ऐसा ही किया था। जब चीन को लगा कि हांगकांग को लेकर बने कानून का विरोध होने लगा तो उसने भारत के साथ सीमा विवाद को हवा दे दी, ताकि देश की एकता और संप्रभुता के नाम पर किसी भी तरह के विरोध को दबाया जा सके।

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने भी भारत के खिलाफ चीन और पाकिस्तान वाली नीति अपना ली और अभी तो सफल ही माने जाएंगे। नेपाल की राजनीति में वैसे भी वामपंथियों के सत्ता में होने के कारण चीन से नजदीकी स्वाभाविक लगती है। केपी ओली शुरू से ही भारत विरोधी रूख के लिए जाने जाते हैं और फिर चीन से दोस्ती स्वाभाविक हो जाती हैं। चीन बड़े पैमाने पर नेपाल में निवेश भी कर रहा है और नेपाल तक रेलवे लाइन भी बिछा रहा है। अब तो कोई छिपी बात रह भी नहीं गयी है कि नेपाल के भारत विरोधी रवैये के पीछे चीन का ही हाथ है।

केपी ओली को चाहिये था मुद्दा

नये नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल ने अपने इलाके में दिखाया है। करीब 35 वर्ग किलोमीटर का ये इलाका उत्‍तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्‍सा है जबकि नेपाल सरकार का दावा है कि ये इलाका उसके दारचुला जिले में पड़ता है। नेपाल के प्रधानमंत्री को तो वैसे भी किसी बड़े मुद्दे की तलाश थी जिस पर सवार होकर वो अपने विरोधियों का मुंह बंद कर सकें। जैसे ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते का उद्घाटन किया, केपी ओली ने मुद्दा लपक लिया और फिर फौरन ही नया नक्‍शा जारी कर दिया। भारत ने अपनी प्रतिक्रिया में साफ साफ कहा भी था कि नेपाल को भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए। नेपाल के नेतृत्व को ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिससे बैठकर बात हो सके। लेकिन नेपाल के प्रधानमंत्री के मन में तो कुछ और ही चल रहा था, लिहाजा वो अपने कदम बढ़ाते गए और नक्शे को संसद की मंजूरी दिलाने में सफल हो गए।

पाक फौज जैसी है नेपाल पुलिस की हरकत

12 जून की रात को नेपाल सशस्त्र बल के जवानों और सीमा से लगे सीतामढ़ी जिले के लोगों के बीच झड़प हुई थी। तभी नेपाल पुलिस की फायरिंग में एक भारतीय नागरिक की मौत हो गई और कई लोग जख्मी भी हो गए थे। उसी दौरान पुलिसवालों ने लगन राय को पकड़ लिया और अपने साथ ले गए। बाद में भारत और नेपाल के अधिकारियों की बातचीत के बाद 24 घंटे के भीतर ही लगन राय को नेपाल पुलिस ने छोड़ भी दिया। ये उस इलाके की बात है जहां सरहद के दोनों तरफ के लोग आपस में रिश्तेदार हैं और लगन राय भी रिश्तेदार से मुलाकात के लिए ही गए हुए थे। मुलाकात के लिए नेपाल पुलिस ने पैसों की मांग की और इंकार करने पर लगन राय की पिटाई करने लगे। जब आस पास के लोग इकट्ठा हो गए तो पुलिसवालों ने देखते ही देखते 15-20 राउंड फायरिंग भी कर डाली और फिर लगन राय को उठा ले गए।

नेपाल पुलिस की हरकत पाक आर्मी जैसी ही है

नेपाल पुलिस की ये हरकत भी वैसे ही उकसाने वाली लगती है जैसे पाकिस्तानी फौजी करते रहते हैं। फर्क बस दोनों सरहदों के नियम और कानून का है। पाकिस्तानी सरहद पर भारत और नेपाल की तरह आने जाने का कोई सिलसिला नहीं है, वरना नेपाली पुलिस ने काम तो वैसा ही किया है। अगर जांच हुई तभी ये पता भी लग सकेगा कि ये सब स्थानीय स्तर पर हुआ है या इस तरह का कोई माहौल बनाने की कोशिश हो रही है।

ऐसा भी नहीं की नेपाल ने एक नक्शा पास कर कोई बहुत बड़ा तीर मार लिया है, जो इलाका वो अपना बता रहा है वो तो पूरी तरह से भारत के कब्जे में हैं और हमेशा रहेगा। लेकिन कोई बड़ी आग लगे उससे पहले हल्के से उठते धुएं पर ही पानी डाल देना समझदारी का काम होता है। हाल देखते हुए उसे अपने भविष्य पर भी गौर करना चाहिये। जैसे नेपाल और भारत में कोई सांस्कृतिक साम्य नहीं है, वैसी ही चीन के साथ भी उसका कहीं कोई मेल नहीं है। भारत के खिलाफ और अपने फायदे के लिए पाकिस्तान भले चीन से कुछ फायदा उठा ले लेकिन नेपाल को सिर्फ नुकसान ही होगा। पाकिस्तान जब अमेरिका के हाथ नहीं लगा तो चीन भी उसको बस थोड़ा बहुत इस्तेमाल कर सकता है उससे ज्यादा कुछ नहीं। पाकिस्तान की फौजी हुकूमत काफी अलर्ट है और नेपाल के लिए एक बार फंस जाने पर चक्रव्यूह से निकलना मुश्किल हो जाएगा।