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बीजेपी को नया अध्यक्ष तो मिलेगा लेकिन क्या अमित शाह जैसा दिमाग मिल पाएगा?

नई दिल्ली: लोकसभा चुनावों में प्रचंड बीजेपी को मिली प्रचंड बहुमत का श्रेय भले ही आमजनता मोदी को दे रही हो लेकिन रणनीतिकार ये अच्छे से समझते हैं की इसके पीछे अमित शाह का हाथ हैं| एक अध्यक्ष जिसके लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं बूथ स्तर का कार्यकर्त्ता| बूथ स्तर के कार्यकर्त्ता को फोन करके जो कहे कि “दोस्त बोल रहा हूँ”| वो अमित शाह अब मंत्री बन चुके हैं और शायद वो अब अध्यक्ष ना रहें लेकिन शाह की जगह कोई अध्यक्ष तो मिल जाएगा मगर शाह जैसा दिमाग लाना मुश्किल है|

शाह में क्या है ख़ास

साल 2014 में राजनाथ सिंह के नेतृत्व में बीजेपी को जीत मिली लेकिन उस समय यूपी के प्रभारी थे अमित शाह| वही शाह जो अभी तक महज गुजरात तक सीमित थे| शाह के नेतृत्व में यूपी जैसे राज्य में बीजेपी ने 73 सीट जीती| इसके बाद उन्हें यूपी चुनावों में प्रभारी बनाया गया तो वहां भी डंका बजाया| लम्बे समय के बाद बीजेपी सत्ता में वापिस आई| इसके बाद जितने भी राज्यों में चुनाव हुए उनमे शाह ने अपना डंका बजाय| कोटा कि एक सभा में बोलते हुए शाह ने कहा था कि “मैं बहुत खुशनसीब हूँ की मेरे अध्यक्ष रहते-रहते लगभग राज्यों में चुनाव हुए और मुझे हर राज्य के कार्यकर्त्ता से मिलने का मौका मिला”| ये शब्द उस अध्यक्ष के हैं जिसका लोहा पार्टी के बड़े नेता भी मानते हैं| मोदी भले ही बिना थके 18 घंटे काम करते हो लेकिन अमित शाह तो कभी रुके ही नहीं|

बस काम से मतलब

एक वरिष्ठ पत्रकार  ने अपनी एक किताब में लिखा कि “शाह एक ऐसे शख्स हैं जिन्हें ज्यादा बात करने से मतलब नहीं है| बाकी अध्यक्षों की तरह वो मीडिया को अधिक समय नहीं देते| उस शख्स को बस मतलब है तो अधिक से अधिक राज्यों में बीजेपी की सरकार से| इसके लिए साम, दाम, दंड, भेद जो भी करना हो करेंगे लेकिन सरकार चाहिए तो चहिये”| आज गली-गली में बच्चा कहता है की मोदी से बेहतर कोई नहीं, वजह पूछने पर उसका कहना होता है पता नहीं लेकिन मोदी से बेहतर कोई नहीं| इसकी वजह मोदी तो है ही लेकिन शाह के द्वारा बूथ में बैठाया गया वो कार्यकर्त्ता भी है जिसके अंदर उन्होंने जान फूंकी है| मेरा बूथ सबसे मजबूत, पन्ना प्रमुखों से मुलाकात, जिला स्तरीय मीटिंग, इसके बाद विधायकों से संवाद, तो फिर सांसदों से मिलने के बाद केंद्र के नेताओं से मीटिंग| ये सब एक साथ अमित शाह करते थे| मीटिंग में बिना किसी डर के दो टूक ये कह देना कि पार्टी में रहना है तो संगठन को मजबूत बनाने के लिए काम करना होगा| इसके बाद कोई बहस नहीं, कोई जिरह नहीं, अगर आप काम नहीं कर सकते हैं तो आप चले जाइए| जो लोग कहते हैं की शाह की पार्टी के सबकुछ हो गए हैं उन लोगो को शायद इसी बात से दिक्कत है|

सबसे चर्चित अध्यक्ष

बीजेपी, कांग्रेस और बाकी पार्टियों में अध्यक्ष तो खूब बने लेकिन जितनी चर्चा अमित शाह की हुई उतनी चर्चा शायद ही किसी कि हुई हो| हर जगह शाह कि चर्चा| कार्यकर्ताओ के मन में एक भरोसा ये रहता है कि भले ही राज्य में पार्टी के हालात कैसे भी हो लेकिन मोटा भाई सब संभाल लेंगे| और मोटा भाई उन्हें निराश नहीं होने देते हैं|

तो अब कौन

अमित शाह अगर के मंत्री बनने के बाद बीजेपी का अगला चेहरा कौन होगा इसपर सोच विचार चल रहा है| इसमें दो नाम सामने आ रहे हैं| पहले जेपी नड्डा और दूसरा ओडिशा के धर्मेन्द्र प्रधान| जेपी नड्डा ने संगठन के लिए खूब काम किया है तो वही ओडिशा में अधिक सीटें दिलवाकर प्रधान ने भी अपनी इमेज खूब बनाई है| अब इन दोनों में से कौन होगा ये तो वक्त ही बताएगा|

एक मत ये भी

कई सारे कार्यकर्त्ता और बीजेपी के अंदर के लोग अलग मत भी दे रहे हैं| उनका कहना है कि जब तक अमित शाह पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी और दिल्ली से केजरीवाल को हटा नहीं लेते तब तक वही अध्यक्ष बने रहेगे| इसके लिए बीजेपी के संविधान में संशोधन भी किया जा सकता है| अगर ऐसे अध्यक्ष को बनाये रखना है तो संविधान में संशोधन करने से कोई भी पार्टी पीछे नहीं हटने वाली है|

अमित शाह हमेशा किसी ना किसी राज्य की यात्रा में रहते हैं| लेकिन अब इस यात्रा को विराम लग सकता है| भले ही चेहरा कोई आ जाए लेकिन शाह ने “पंचायत से पार्लियामेंट” का जो सिस्टम बनाया है वो अचूक है|