देश के प्रधानमंत्री चाहते हैं कि सब आत्मनिर्भर बने। देश की जीडीपी कई महीनों से गिरती ही जा रही है, इतना हमारा फिल्मों का स्तर नहीं गिरा जितनी जीडीपी गिर गई है। कॉरपोरेट रो रहे हैं, प्रोडक्शन से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन तक सब कुछ ठप्प पड़ा है। जो कुछ बचे हुए थे वो अब लॉकडाउन में अपनी अंतिम सांसें ले रहे हैं। लोगों की नौकरियां जा रही हैं, बिजनेस डूबे हुए हैं, मजदूर पलायन कर रहे हैं, लेकिन इसको रोकने के लिए मोदी जी ले कर आए हैं ब्रह्मास्त्र, आप आत्मनिर्भर बनें। बस अब यही करना है और क्योंकि मैं तो आत्मनिर्भर हूं और मुझे काम की तलाश है। लेकिन मार्केट बंद है, प्राइवेट सेक्टर में मंदी है। पूरे जोर-शोर से कॉस्टकटिंग की जा रही है, तो ऐसे में काम कैसे मिलेगा? सरकारी नौकरी का कुछ अंदाजा होता नहीं है।
किस लोकल को बढ़ाएं?
लेकिन इससे भी बड़ा और असली संकट तो अलग है क्योंकि मोदी जी तो कह रहे हैं कि लोकल को बढ़ाओ। लेकिन किन लोकल्स को? हम जैसे आत्मनिर्भरों से काम लेने वाले लोकल क्या अब भी जीवित हैं? लेकिन करना तो है क्योंकि मोदी जी ने कहा है, इसे चाहे नया और लंबा टास्क ही समझ लो। नहीं तो तुम्हें पाकिस्तानी एजेंट बुलाने में देर नहीं लगेगी। तो ऐसे में क्या अब चाय -पकौड़े का ठेला लगाना ही अंतिम विकल्प हो गया है? क्या आत्मनिर्भरता का कोई और विकल्प बचा है? क्या अब खुद ही, खुद के लिए प्रोजेक्ट बनाएं, खुद के लिए ही मार्केटिंग कर के खुद को ही बेचें। जिसके बाद उस पर जीएसटी लगा कर सरकार को दे दें। उसके बाद प्रॉफिट पर सरकार को टैक्स देने के साथ ही इनकम टैक्स भी दे देंगे। जिसके बाद सरकार आर्थिक पैकेज के लिए 20 लाख करोड़ का इंतजाम करेगी।
मिडिल क्लास कैसे आत्मनिर्भर होगा?
एक मिडिल क्लास का आत्मनिर्भर होना थोड़ा कठिन होता है। क्योंकि हमें इन लाखों करोड़ के पैकेज समझ नहीं आते हैं, क्योंकि कभी इनका लाभ मिलता ही नहीं है। वो तो सरकारी बाबूओं के पास पहुंचते हैं ठीक वैसे ही जैसे देश का बजट कहां जाता है, इसके बारे में हमें कुछ भी पता नहीं चलता है। ठीक वैसे ही जैसे मुद्रा योजना में अब तक बैकों के 17 हजार करोड़ रुपये एनपीए हो गए हैं। जाने कैसे आत्मनिर्भर लोग है जो बैंकों का पैसा ले कर भाग गए और आप लोन की एक किश्त नहीं देंगे तो आपको पाताल से खोज निकालेंगे। ये 17 हज़ार करोड़ रुपये को डकारने वाले डकैत कौन थे जिनकी जानकारी किसी को न हुई। ये बिल्कुल वैसी ही डकैती है जैसे कोई ऑनलाइन ठग एक मोटे बैंक अकाउंट में सेंधमारी करता है और उस पैसे को हजारों छोटे छोटे अकाउंट में बांट देता है। क्या यहां भी यही हुआ है, लाखों छोटे छोटे अकाउंट्स में देश का 17 हजार करोड़ ट्रासंफर हो गया। खैर अब पार्टियां भी तो आत्मनिर्भर लोगों की हैं। उनके लिए कौन सा आर्थिक पैकेज है? अब इन्हें भी तो 100, 50 करोड़ के छोटे मोटे चंदों पर जिंदा रहना पड़ता है।
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वैसे आत्मनिर्भर तो वो मजदूर भी हैं जो शहरों में काम करने के लिए अपने घरों से दूर आए थे, जो अब सुना है सड़कों पर चल रहे हैं और अपने घर जाने की कोशिश कर रहे हैं। जिनके पैरों में छाले पड़ गए हैं, कोई ट्रेन से कटकर तो कोई गाड़ी के नीचे आ कर मर गया है। सुना है सरकार गरीबों के लिए बड़ा काम करती है लेकिन गरीब तो पहले से ही आत्मनिर्भर है। और मोदी जी कह रहे कि अब देश को भी आत्मनिर्भर बनना है। तो क्या अब देश भी सड़कों पर आने वाला है? सवाल कई हैं लेकिन मुझे क्या करना मैं तो आत्मनिर्भर हूं।